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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

Samprada Jain

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  1. यदि जीव बाह्य से भी आकिञ्चन धारण कर लेते हैं, भले अंदर के कर्म नहीं छूट पाते तो भी वे स्वर्ग में अंतिम ग्रैवेयक तक जा सकता है और कोई उपाय से नहीं जा सकते।

     

    परिग्रह से रहित आत्मा उर्ध्वगामी होती है। 

     

    प्रतिभासम्पन्न वही होता है जो दूसरे पर आधारित नहीं होता।

     

    पर द्रव्य का आश्रय जितना कम करोगे उतने स्वस्थ्य होते जाओगे।

     

    स्थान के प्रति मोह भाव परिग्रह का रूप धारण कर लेता है।

     

    जिससे विकल्प हो रहा हो, उसे छोड़ दो।

     

    ~~~ उत्तम आकिंचन धर्म की जय!

    ~~~ णमो आइरियाणं।

     

    ~~~ जय जिनेंद्र, उत्तम क्षमा!

    ~~~ जय भारत!

    2018 Sept. 22 Sat. 13:20 @ J

  2. 2018 Sept 12 Wed.:

     

    निर्जरा तत्व के उपरान्त कोई पुरुषार्थ नहीं रह जाता। मोक्ष तत्व अंतिम नहीं है वह तो फल है। मोक्ष, मार्ग नहीं है मार्ग जो कोई भी है वह संवर और निर्जरा ही है।

     

    संवेदनशीलता, अनुभव करना आत्मा का लक्षण है। केवलज्ञान आत्मा का लक्षण नहीं वह तो आत्मा का स्वभाव है।

     

    वीतरागता आत्मा का स्वभावभूत गुण है उसके बिना हमारा कल्याण नहीं हो सकता।

     

    प्रत्येक पदार्थ का अस्तित्व अलग-अलग है और सब स्वाधीन स्वतंत्र हैं। उस स्वाधीन अस्तित्व पर हमारा कोई अधिकार नहीं जम सकता।

     

    ~~~ णमो आइरियाणं।

    ???

     

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