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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

anil jain "rajdhani"

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Image Comments posted by anil jain "rajdhani"

  1. bahut bahut anumodna , Abhishek ji, aapke punya ki 

    namostu acharyshree..

    triyog vandan !

    रोटी मांगना नहीं
    रोटी बनाना सीखो
    रोटी खिला के
    खाना सीखो ....
    सर्टिफिकेट नहीं
    अनुभव की कीमत को समझो
    गुरु दूर ही सही
    भावना से
    गुरु के निकट पहुंचो ...
    गद्य - पद्य को मत देखो
    भावो को अपने
    मूर्त करो
    नहीं है सृजनता
    शब्दों की तुम में
    भावों से ही अपने
    प्रभावना का अंग बनो ...
    पगार नहीं
    कमीशन ही बहुत होता है
    शुकून पाने के लिए
    कमीशन पाने वाला
    नहीं होता कभी दिवालिया
    निरंतर वृद्धि को ही
    वो प्राप्त होता रहता ....
    स्वार्थ की ही नहीं
    अड़ोस पड़ोस की भी सोचो
    अड़ोस पड़ोस की सोच वाला
    पाता आत्मीयता को
    उनकी प्रगति की कामना से
    अपने घर में भी आती समृद्धि स्वत:...
    थे गुरु मेरे ह्रदय बसो !
    जिनको दुर्लभ से दर्शन
    दिगंबर संतों के
    वो भावना के बल से ही
    पा गए आशीर्वाद
    कर गए रचनाएँ बड़ी बड़ी ...
    भावों को अपने
    प्रेषित करो
    सबके कल्याण की
    भावना को लिए
    तर जाओगे तुम कमीशन में ...
    अरे !
    नहीं मिला पुण्य आज
    पिच्छी पाने का गुरुओं की
    भावना भाओ आज से
    हो जाएगी प्राप्त अगले वर्ष ही
    अनुभव को बढ़ाते जाओ
    भावनाओ के बल से ...
    मम गुरुवर आचार्यश्री
    विद्यासागर जी का संबोधन
    आज पिच्छी परिवर्तन कार्यक्रम पर
    कर पाया इतना ही ग्रहण मैं
    अपनी बुद्धि में
    बस, शेयर कर दिया तुम से ...
    नमोस्तु गुरुवर, नमोस्तु, नमोस्तु !!!
    बनी रहे कृपा आपकी यूँ ही
    बेशक बैठे है हम
    दूर आपसे
    भावों के बल से तो
    आप बसे हो
    हमारे ह्रदय में
    संयम मार्ग हमारा भी
    बने प्रशस्त
    हटें हम असंयम से
    मात्र आपके स्मरण से
    आपकी कृपा से ....
    त्रिकाल कोटि कोटि वंदन !!!
    अनिल जैन "राजधानी"
    श्रुत संवर्धक
    ४.११.२०१९

  2. निष्ठापन की ओर बढ़ रहे 
    अब चातुर्मास सभी जैन संतों के 
    पिच्छी परिवर्तन करते सभी संत 
    कार्तिक के महीने में 
    बनते निमित्त ऐसे आयोजन 
    अनेकों त्याग/व्रत/नियम आदि 
    लेने वाले सुधि श्रवकों के ...
    जो भी श्रेष्ठि श्रावक 
    करते भेंट संयोपकरण पिच्छी 
    गुरुजनो को 
    अथवा लेते पुरानी पिच्छी 
    गुरुजनो की 
    लेते वो भी नियम आदि 
    बढ़ने को संयम मार्ग में अपने ....
    यदि सौभाग्य नहीं मिले 
    तुम्हे ऐसा 
    करो अनुमोदना 
    लेकर कोई व्रत/नियम 
    तुम भी 
    मिलेगा उतना ही लाभ 
    जितना मिल रहा 
    पिच्छी लेने / देने वाले को 
    होगी कर्मो की निर्जरा तुम्हारी भी ...
    अपनी शक्ति के अनुसार 
    करो त्याग ऐसे अवसरों पर 
    प्रशस्त बना रहेगा मोक्षमार्ग तुम्हारा भी ...
    जय जिनेन्द्र !
    अनिल जैन "राजधानी"
    श्रुत संवर्धक 
    ५.११.२०१८

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