Ashok singhvi
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हिंदी दिवस पर एक चिंतन"कैसे बने इंडिया भारत ,भारत नाम बढ़ाना है ,मानवता का परचम फहरे ,नैतिक देश बनाना हैनैतिक होगा जनगन इसकानैतिक होगा जन मंत्री ,नैतिक होगा महाप्रशासकनैतिक जो बनवाए नीतिसत्य अहिंसा धर्म हमारा ,जन जन तक पहुंचाना है ,मानवता का परचम फहरे नैतिक देश बनाना है।आचार्य विध्यासागर कहते इंडिया नाम हटाना हैसंस्कारों की शिक्षा वाला भारत देश बनाना हैजहाँ चिकित्सक सेवा धर्मी ,दौलत का नहीं मोह जिसे ,जहाँ प्रशासक जनहितकारीदौलत का नहीं लोभ जिसेशिक्षक होगा सेवाभावीआदर्शों का निर्देशक ,कामगार होगा कर्मठ तबअपने काम का पथ दर्शकसभी हो माहिर अपने कर्म में सबमें स्नेह जगाना हैसंस्कारों की शिक्षावाला भारत देश बनाना है ।धर्म जहाँ हो एक सभी कासच्चाई महकाता हो ,नैतिकता का बीज लगातानैतिकता उपजाता होदौलत का नहीं मान जहाँ परआदर्शों का मान बढ़े ,आदर्शों पर चलने वाले संतों का सम्मान बढ़ेएेसी चाहत रखने वाले बोलो कितने लोग खड़ेजो भी हो तैयार वे आओ इकजुट हो हम साथ बढ़ेंहम सबको मिलकर ही तो अब जागा देश बनाना हैमैकाले की शिक्षा वाला इंडिया नाम हटाना हैआदर्शों की सांसों वाला भारत देश बनाना है ॥अशोक मंथन "
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विद्धया गुरु को शीश नवाकर उनके ही गुण गाऊँ,
पदचिन्हों पर चलकर उनके , उनसा ही बन जाऊं
सत्य खोज लूँ मैं जीवन का, अपना अंतर ध्याके
सत्य को अपनाकर जीवन में,मोक्ष मार्ग पर चल लूँ -
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नमोस्तु गुरुवर , नमोस्तु गुरुवर
नमोस्तु गुरुवर , नमोस्तु गुरुवर
तुम्हारे चरणों में हमारा
नमोस्तु गुरुवर , नमोस्तु गुरुवर
आप बिराजे ह्रदय में मेरे , हरदम गाता गुणगान तेरे ,
बंद आँखे जब अपनी करता ,अंतर में जब ठहरा रहता ,
तुमको सदा मुस्कुराता पाता,
नमोस्तु गुरुवर , नमोस्तु गुरुवर
मन अपना मैं जब शांत करता
मैं मुस्कुराता निर्मल होता
तुमको सदा में संग ही पाता
आँखों से तब पानी बहता
सामने मेरे तुमको पाता
रोम रोम तब मेरा कहता
नमोस्तु गुरुवर , नमोस्तु गुरुवर |
आचार्य श्री का सपना " कैसे बने इंडिया भारत "
In संयम स्वर्ण महोत्सव
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