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Posts posted by राजेश जैन भिलाई
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यूं तो अक्सर बड़े बाबा के दर्शन के भाव बनते है और फिर जब बड़े बाबा के समवशरण में छोटे बाबा विराजित हो तो मन मचलने ही लगता है कुंडलपुर की ओर.....
संयोग से सपरिवार कुंडलपुर के दर्शन का पुण्ययोग भी बन गया, ज्योहीं वाहन पटेरा से आगे बढ़ा थोड़ी ही देर में सड़क की दोनों ओर अंतहीन समतल मैदान में इंजियनिरो की टोलियां मूर्त रूप देने जुटी हुई थीं
वहीं कुंडलपुर के प्रथम प्रवेश द्वार के पहले ही तीनों ओर के मुख्य मार्ग से कुंडलपुर जिनालय तक 6 लेन सड़क मार्ग निर्माण युद्धस्तर पर चल रहा था दोनों ओर की सड़कों में मुरम को पाटते, मंजीरे की ध्वनि वाले, रोडरोलर मदमस्त गजराजों की मानिंद डोल रहे थे।
वही रेत, गिट्टी, शिलाओं के भार से दोहरे हुए दर्जनों विशालकाय डंपर ऊबड़खाबड़ कच्चे रास्तों पर सरपट भागे चले जा रहे थे।
वहीं कृषि कार्यो एवम ग्रामीण एवम कस्बों के बहुउद्देश्यीय वाहन पचासों टेक्टर भी इस महा महोत्सव में अपना योगदान दे रहे थे।
निर्माणाधीन सड़क के दोनों ओर बिजली के के खम्बों में मोटे मोटे केबलों से सम्पर्क जोड़ा जा रहा था वही दर्जनों जेसीबी, उखाड़े गए बिजली के खंबे, बड़ी बड़ी शिलाओं, सीमेंट के विशाल पाइप को अपनी आधुनिक सूंड में लपेटे तेज गति से दौड़ रहे थे।
कुछ दूर आगे वर्कशॉप में सैकड़ो शिलाओं पर चलने वाले कटर अपने पाश्चात्य संगीत गुंजा रहे थे इस बार शिल्पकारों के साथ उनके घर की महिला सदस्य भी अपने शिल्प का प्रदर्शन कर घोषित कर रही थी कि बड़े बाबा के बड़े निर्माण में हमारी भी छोटी सी भूमिका है।
कुंडलपुर के प्रमुख प्रवेशद्वार पर प्रवेश करते ही मान स्तम्भ के दर्शन हुए जब दाहिनी ओर नजर गई तो वर्धमान सरोवर के सामने वाले सभी भव्य जिनालयों के दर्शन हो रहे थे
जिनालयों के सामने ही अलग, अलग समूहों में आर्यिका माताजी जाप्य, स्वाधाय एवम श्रावक, श्राविकाओं की जिज्ञासा का समाधान कर रहीं थी समूचा परिसर ऐसा लग रहा था कि श्रमण भास्कर आचार्यश्रेष्ठ के सामने भव्य चांदनी बिखरी हुई हो
सन्त भवन में प्रवेश के पूर्व सैकड़ो दर्शनार्थी आचार्यश्री के दर्शन पाने लालायित थे, वहीं दूसरी और सैकड़ो लोग आचार्यभक्ति के लिये अपना स्थान सुरक्षित कर अंगद के पैर की तरह जम गए थे।
कुछ ही देर में कुछ शोर सा हुआ बिटिया ने संकेत किया तुरन्त द्वार पर आओ.... लेकिन स्थान छोड़ने पर इस कीमती जगह पर दूसरे का कब्जा होने की आशंका थी,अबकी बार संकेत पाकर द्वार की ओर लपका, जिनालय से संध्या दर्शन कर श्रमणेश्वर आचार्यश्री मंद मंद मुस्कान लिये सन्त भवन की ओर आ रहे थे
सैकड़ो कंठो ने गुरुचरणों में अनवरत नमोस्तु नमोस्तु... निवेदित किया गुरुदेव ने सभी पर वरदानी करकमलों से आशीष वर्षा की, मैंने भी नमोस्तु निवेदित किया संयोग से ऋषिराज आचार्यश्री की पलकें उठी और अधरों पर मोहक मुस्कान लिये देवदुर्लभ आशीर्वाद बरसा दिया
लगा कि स्वर्गो की सारी सम्पदा एक पल में ही मिल गई।
अल्प आहार के बाद बड़े बाबा की बहु प्रसिद्ध आरती हेतु बाबा के दरबार आ गए पारम्परिक ढोलक और मंजीरों की थाप से तन मन झूमता रहा कब घड़ी की सुइयां उर्ध्व गमन कर गई पता ही न चला
बड़े बाबा के दरबार से बाहर आकर नींचे जाने से पहले नवनिर्मित शिखर को प्रणाम कर ही रहा था तब सैकड़ो फुट उतुंग शिखर पर विशाल क्रेनों पर दर्जनों शिल्पकार कड़कड़ाती ठंड में कार्य कर रहे थे
स्मरण हो आया बहु प्रचलित वाक्य बड़े बाबा और छोटे बाबा के सभी कार्यों में स्वर्ग के देवताओं की मुख्य भूमिका रहती है
और अब तो पूरा भरोसा हो गया कि बड़े बाबा के विशाल शिखर पर स्वर्ग के देव निर्माण कार्य कर रहे है।
शब्द भाव संकलन
राजेश जैन भिलाई
अगर आप भी कुंडलपुर जाके आए हैं, तो अपनी अनुभूति इस पोस्ट कमेन्ट कर अवगत कराए
(महामहोत्सव अनुभूतियाँ : आपकी अनुभूति साझा करे हमारे साथ)- 1
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छोटे बाबा बड़े बाबा से ज्यादा दिन दूर नही रह पाते शायद इसी लिए बड़े बाबा कि ओर ही विहार करेंगे
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आत्मीय प्रमोदजी सोनी सा जी
जय जिनेन्द्र
कई दिनों से बहुप्रतीक्षित फिल्म को जब परसों देखने का अवसर मिला तब मन आनंद से भर गया फिल्म देखते समय मई आस पास बैठी माँ लोगो को भी देख लेता था उनके हाब भाव बता रहे थे की वे जीवंत पलों को आत्मसात कर रही है दर्शको में शायद ही कोई आँख रही होगी जिससे अश्रुधारा न बही हो लैंडमार्क फिल्म की टीम बहन विधि कासलीवाल ओर उनकी समस्त टीम तक हम सभी की सद्भावनाए बधाईयां अवश्य प्रेषित कीजियेगा गुरुदेव की जीवनी के सभी दस्तावेजों को जन जन में प्रेषित करके आपने अतिशय पुन्य अर्जित किया है इस फिल्म में आपके विशिष्ठ सहयोग के प्रति हम सभी आभार एवं कृतज्ञता ज्ञापित करते है
शुभकामनाओं सहित
राजेश जैन भिलाई
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अन्य नगरों की तरह हमारे रुआबाँधा भिलाई को भी फ़िल्म विद्योदय देखने का पुण्यशाली अवसर मिला।
विद्योदय देखने से पहले से मन मे एक छवि थी कि फ़िल्म में कई पात्र अभिनय करेंगे।
लेकिन जब फ़िल्म आरम्भ हुई तो लगा इस फ़िल्म में अभिनय तो है ही नही जो है वह तो जीवन्त सा वास्तविकता के निकट है सूत्रधार बड़ी कुशलता से चित्रों, दृश्यों, भावों से उन अविस्मरणीय पलो को जीवंत कर देता बाल ब्रम्हचारिणी सुवर्णा दीदी, महावीर जी सदलगा एवम विद्याधर के बालसखा मित्र जब विद्याधर की कही अनकही उन बातों को बड़ी आत्मीयता से सुनाते तब लगता हम सदलगा में ही बैठे साक्षात दृश्य देख रहे हो।
सदलगा के अष्टगे परिवार के निवास में रखा पालना देख लगता था वर्तमान के सभी जीवों के पालनहार शिशु बालक विद्याधर कुछ ही समय पहले पालने से उठे हो
फ़िल्म में रेत कलाकार की सरपट उंगलियों का स्पर्श मनोभावों को दर्पण सा उकेर देता।
अजमेर के भागचंद जी सोनी के परिवार की माँ जब मुनिश्री विद्यासागर के प्रथम आहार की घटना सुनाती है तब लगता 50 वर्ष पूर्व का वह पल सामने ही हो।
जब जब आचार्यश्री चित्रपटल पर आते लगता हम सभी साक्षात जीवन्त उनके चरणों मे बैठे हो
कई बार मुझे लगता मूकमाटी के कठिन शब्द अन्य दर्शक कैसे समझेंगे लेकिन मेरे पड़ोस में बैठी अनपढ़ माँ को जब देखता तब उनके चेहरे के हाव भाव बता रहे थे वह भी मूकमाटी समझती ओर जानती भी है।
कई बार पलके और मन भी भीग गया जब पूरा का पूरा अष्टगे परिवार मोक्षपथ पर आरूढ़ हो गया।
सभी दर्शक दम साधे उन जीवन्त पलो को तब तक आत्मसात करते रहे जब फ़िल्म समाप्त हुई फिर भी अनेको दर्शक अतृप्त, किसी मांत्रिक के मन्त्र प्रभाव में बंधे से बैठे रहे शायद इतनी जल्दी फ़िल्म का समापन उन्हें तृप्ति, संतुष्टि नही दे सका
राजेश जैन भिलाई
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अनियत विहारी, आचार्यश्री के बढ़ते चरण, और गुरुभक्त श्रावको की बढ़ती धड़कने...
????????अनियत विहारी, आचार्यश्री, जब विहार करते है तब उनके चरण किस ग्राम, कस्बा, नगर, में पड़ जाए कोई नही जानता यहा तक संघस्थ पुज्यवर मुनिराजों को भी जानकारी नही होती कि गुरुदेव का विहार किस दिशा में होगा
आज जबलपुर से लगे पड़रिया में आचार्यश्री ने प्रातः कालीन प्रवचन में संकेत किया, कि गर्मी के मौसम में ठंडी हवाएं लंबे विहार के अनुकूल हो सकती है।
जबलपुर से भी बायपास से कई रास्ते निकलते है यह सुनकर भारत भर के गुरुभक्त श्रावको के मन मे धड़कने बढ़ने लगी है कि अनियत विहारी आचार्यश्री के चरण ग्रीष्मकाल की वाचना हेतु कहा थमेंगे। या तपते ग्रीष्म काल में गुरुचरण चलते रहेंगे।
आइये हम भी देखे कि हमारे अनुमान कितने सटीक है और हम कितने बड़े भविष्यवक्ता है
सम्भावित अनुमान●जबलपुर
●कोनीजी
●कुंडलपुर
●बीना बारह
●टीकमगढ़
या फिर
गुरुचरणों के चरणों की थाप सुनने आकुलित गुरु प्रतीक्षा में पलके बिछाए में प्रतीक्षित राजस्थान
●नारेली तीर्थ
आग्रहकर्ता
राजेश जैन भिलाई
?????????? -
आपको पाकर ऐसा लगा कि,अनंत दोषों के कोष का..अनगिनत गुणों के स्वामी से मिलन हो गया।धने तमस में रहने वाले का...दिव्य प्रकाश के स्रोत से मिलन हो गया।तेज धूप की लपटों में,सूखने वाली बूंद को...विशाल दरिया ही मिल गया।आज मुझ अल्पमति को भी लगा की...पूर्ण 'विद्या का सागर' ही मिल गया।शांतिसागराचार्यवर्य से,वीरसिंधु आचार्य हुए।तदनंतर शिवसागर सूरि, ज्ञानसिंधु आचार्य हुए।।ज्ञान गुरु ने निज प्रज्ञा से,हीरा एक तराश लिया।युगों-युगों तक जो चमकेगा,विद्यासागर नाम दिया।
गुरुदेव नमन
रजत जैन भिलाई- 1
बड़े बाबा और छोटे बाबा एवं उनके बड़े समवशरण की इन्द्रों द्वारा अद्भुत भक्ति....
In Topics
Posted · Edited by राजेश जैन भिलाई
बड़े बाबा और छोटे बाबा एवंउनके बड़े समवशरण की इन्द्रों द्वारा अद्भुत भक्ति....
इन दिनों बड़े बाबा के दरबार मे मुनिसंघो, आर्यिका संघो का आगमन प्रतिदिन हो रहा है
जब भी आपको पुण्य उदय से अवसर मिले तो अवश्य देखियेगा, कि संघो के आगमन के समय जब समस्त मुनिराज एवम आर्यिका संघ अपने शिक्षा दीक्षा प्रदाता ऋषिराज श्रमणेश्वर आचार्यश्री की परिक्रमा करते है तब लगता है कि चारित्र, तप, त्याग, तपस्या के सुमेरु पर्वत की परिक्रमा ज्योतिषी देव सूर्य, चन्द्रमा, ग्रह, नक्षत्र तारे एक साथ कर रहे है
समस्त मुनिराजों के मुखमंडल पर दमकता तेज ज्योतिष देव सूरज की किरणों की मानिंद लगता है
वहीं श्वेत, धवल वस्त्र में समस्त आर्यिका माताजी ऐसी सुशोभित होती है जैसे साक्षात ज्योतिष देव चन्द्रमा अपनी चांदनी संग सुमेरु पर्वत की परिक्रमा कर रहे हों।
अभी तक लाखों श्रावक परिवार ऐसी अद्भुत भक्ति धारा में अवगाहित हो चुके है
तो भला स्वर्ग के इंद्र इंद्राणी कैसे दूर रह सकते है
प्रतिदिन मुनिराजों आर्यिका माताजी द्वारा भक्ति और सौधर्म इंद्र एवम समस्त इंद्र परिवारों सूरज दादा, चंदा मामा की प्रति दिन गुरुभक्ति देख वरुण इंद्र और मेघकुमार इंद्र से रहा न गया उन्होंने कुबेर इंद्र को समझा बुझा कर अपने संग गठजोड़ कर लिया
इन तीनों इन्द्रों ने बड़े बाबा और छोटे बाबा की भक्ति करने से पहले सांगानेर, चांदखेड़ी, बिजोलिया से भक्ति आरम्भ की, वरुण देव अपने धुंआधार गति से बढ़ रहे थे वहीं कुबेर देव बड़ी उदारता से रत्नों की वर्षा कर रहे थे
यह बात अलग है कि वे रत्न धरती में पहुचने तक ओले की शक्ल में बदल जाते थे
राजस्थान से लेकर मप्र और फिर बड़े बाबा के दरबार मे भक्ति में ऐसे बरसे की आहार चर्या के समय पड़गाहन में भी डटे रहे।
स्वर्ग वापसी के समय तीनों इंद्रदेव ने छतीसगढ़ के चन्द्रगिरि ओर अमरकंटक में भी अपनी अद्भुत भक्ति का अनूठा प्रदर्शन किया था
स्वर्ग के नारद मीडिया के अनुसार सुना गया है कि धनश्री कुबेर इंद्राणी और वरुण व मेघकुमार इंद्र की इंद्राणी ने अपने महलों के द्वार बंद कर कोप भवन में चली गईं है उन्हें शिकायत है कि जब अनेकों विशाल मुनिसंघ आर्यिका संघ बड़े बाबा के दरबार हेतु विहार कर रहे है तब तो ऐसे मौसम में वरुण कुमार मेघकुमार इन्द्रो और सबसे बड़ी बात कुबेर इंद्र को वहां क्यो जाना था? कम से कम रत्न वृष्टि से तो बचना था। और ज्यादा ही भक्ति भाव छलक रहा था तो मध्य रात्रि ही जाना था। ताकि ऐसे ऋषिराज, यतिराजो, आर्यिका माताजी पर उपसर्ग करने से तो बच जाते
बेचारे तीनों इंद्र भीगती बरसात और कड़कड़ाती ठंड में बाहर खड़े है.....
शब्दआंकन
.राजेश जैन भिलाई .
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