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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

priyanka singhai

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Posts posted by priyanka singhai

  1. 🙏किसी महान व्यक्तित्व के

    कुल, जाति, वंश मे आना

    भी एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी हैं।

    वंश भी भी ऐसा जो आंदि से अनंत हैं

    जो मोक्ष मार्ग का प्रदर्शक है 

    हम सभी आदिनाथ से महावीर तक

    24 भगवान कि संतान हैं

    कुंदकुंद से विद्यासागर

    और

    भी अनंतानंत महान गुरु हमारे,

    जिन्होंने हर युग मे आ कर सही मार्गदर्शन दिया।

    जन जन को मोक्ष मार्ग के लिए प्रशक्त किया।

    हमारे पुण्य का उदय था

    जो हम इस युग मे भी विद्यागुरु को पाया...

     हमारे गुरु तो युग गौरव थे, हैं और सदैव रहेंगे।

    हमारे गुरु ने तो सारे विश्व मे

    जिन कुल,जिन समाज, जैन समुदाय

    का डंका बजा दिया।

    उन्हें देख कर, उनकी चर्या को देख कर

    जन जन ने जाना, साधु परमेष्ठी ऐसे होते हैं।

    उनकी चर्या ऐसी होती हैं,

    उनका तप, उनका ज्ञान, उनका त्याग सर्वोच्च हैं।

    क्या ???

    हमने भी स्वयं को इस योग्य बनाया हैं

    कि हम भी गर्व से कह सके

    कि हम विद्यासागर गुरु हमारे,

    हमारे गुरु को भी गर्व हो

    कि उन्होंने जन कल्याण का जो सपना देखा,

    जन कल्याण के लिए जो प्रयास किये वो पूर्ण हुए ।

    हमे भी अपने गुरु को गोर्बानित करना हैं

    गुरु के उपदेश को विश्व से फैलाना हैं।

    सोचिये क्या???

     हम गुरु के नाम को गौरव को गरिमा को बनाये रखने मे समर्थ हैं

     जरा ध्यान से सोचिये

    क्या हम जिन कुल, जिन धर्म, विद्यागुरु के योग्य हैं?? हमारा क्या योगदान रहा हमारे कुल,जाति, समाज, गुरुओ के प्रति, हमारे गुरु के कठिन तप ध्यान साधना हमारे लिए भई उनकी सत भावना कही व्यर्थ न जाये।

  2. आचार्य विद्या गुरू का सपना हो साकार

    इंडिया नहीं भारत बोलो

    भारत को फिर से वही भारत बनना है।

    जो ऋषि मुनियो के तप की भूमि थी।

    जन कल्याण जिनका उद्देश्य था

    ज्ञान जिनका सर्वोत्तम था

    प्रेम मे समर्पण था

    जीवन मे संस्कार, संस्कृति, थी

    व्यवहार मे विवेक था आँखों मे तेज था

    जहाँ गुरुकुल शिक्षा का स्थान थे

    बचपन से जवानी गुरु की छाया मे थी

    योगता निखारना गुरु का दायत्व था

    योग्य बनना व बनाना भी गुरु दायत्व था

    गुरु माँ का प्यार माँ के प्यार से भी श्रेष्ठ था।

    गुरु शिष्य का सम्बन्ध पवित्र था।

    जहां कोई लालच नहीं था।

    गुरु उद्देश्य सिर्फ शिष्य की योगिता को निखारना,

    उससे योग्य बनने तक ही सीमित नहीं था....

    संस्कार, संस्कृति, राष्ट् प्रेम, राष्ट् हित, जन हित भी

    सर्वोपरि था

    पैसे तो सिर्फ जीवन यापन के लिए सहायक थे

    सम्पूर्ण जीवन नहीं हुआ करते थे ।

    योग साधना भी जीवन के महत्वपूर्ण अंग थे

    शररिक, मानसिक,अध्यत्मिक, आत्मिक

    शिक्षा का समावेश था

    भारत महान देश था 

    आयु के अनुसार जीवन को बटा था

    8 साल तक माँ का प्यार

    8 से 18 तक गुरु संस्कार

    18 से 21 स्व निर्माण

    या दीक्षा महोत्सव 

    21 से ग्रस्थधर्म दीक्षा महोत्सव

    फिर पति पत्नी, परिवार के साथ

    धार्मिक अनुष्ठान, धार्मिक यात्रा...

    पारिवारिक दायत्व की पूर्ति

    माता पिता, गुरु के लिए सम्मान

    तो आद्वितीया था

    पिता का सिर ना झुके किसी के आगे

    कितनी ही पुत्रीयो ने जिन दिक्षा ली।

    माता-पिता कि आज्ञा से 

    राम वन गए।

    श्रवणकुमार माता पिता को

    अपने कंधे पे बैठा कर

    धर्म यात्रा पे गए।

    एकलव्य ने अपना अंगूठा काटकर

    गुरु को दे भी दिया।

    ऐसे अनेको महान व्यक्तिवो ने

    भारत कि भूमि को गोर्बानित किया।

    अनन्तअनंत श्रावक संयम धारण करके

     साधु परमेष्ठी, आचार्य परमेष्ठी बने।

    अनेको ने ग्रस्थ अबस्था मे रह कर भी

    ब्रह्मचार्य ब्रत का पालन कर

    सम्पूर्ण जीवन गुरु भगवानतो

    कि सेवा मे व्यतीत किया।

    50 के बाद स्वयं को परिवार से,

    परिवार के दायत्व से दूर कर शेष 

    सम्पूर्ण जीवन धर्म ध्यान मे

    समर्पित कर

    अंतिम छड़ के लिए

    संलेखन कि तैयारी करना

    ये थी हमारी भारतीय संस्कार और संस्कृति

    जो कही खो गई है

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