आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज के चरणो में नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु भगवन
आचार्य श्री के प्रवचन का
शीर्षक आओ सुधारें अपनी मान्यता
गुरुदेव कहते हैं कि हमें अपनी मान्यता को अनुभव लाना चाहिए ।कोई हमें कुछ भी कहता रहे उससे कुछ फर्क नहीं पड़ता जब तक हमारी मान्यता अनुभव सिद्ध होगी हम उस बात को स्वीकार करने लग जाएंगे ।
आज हमारे बच्चों को जो हम पढ़ाई पढ़ा रहे हैं विज्ञान के आधार पर उससे मोक्ष मार्ग संबंधी थोड़ा सा भी लाभ हमको नहीं होता मान्यता तो मानने सेे होती चलता है ।चाय काली होती है उनको उबलते पानी में डाल देते हैं । दूध डालकर
वह लाल हो जाते हैं
बालक समझदार है पर मझधार में
तो मोक्षमार्ग में हमें अपने अनुभव लेना प्रारंभ करना होगा हमारे कर्म सिद्धांत ऐसा है Ki गर्म चाय की पत्ती की भांति एक बार उदय उन्होंने तो दोबारा नहीं कर्म नहीं आएगा सत्ता में जब तक है तब तक जब तक कर्म युद्ध में आता है करमो उदय फिर से नूतन् कर्मों का बंधन हम अपने राग-द्वेष से कर लेते हैं एक बार करो मैं उदय में आ गया तो वह चाय के पत्ते की भांति फैक्ट्रियों के हो गया पर हम उसको फेंक नहीं पाते गांट लगाकर बांधे रखते हैं ऐसी हमारी म मान्यता हो गई है हमें अपने बच्चों को विश्वास दिलाना है कि अपनी मान्यता को बंद करें आत्मा देखने वाली है ही नहीं इसको विश्वास केइसको विश्वास के रूप में हम देख सकते हैं जय जिनेंद्र नदी कभी नौटकी नहीं फिर तू क्यों लौटता
3 अगस्त 2018 आचार्य विद्यासागर प्रवचन
In आचार्य श्री प्रवचन
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3 अगस्त 2018
आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज के चरणो में नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु भगवन
आचार्य श्री के प्रवचन का
शीर्षक आओ सुधारें अपनी मान्यता
गुरुदेव कहते हैं कि हमें अपनी मान्यता को अनुभव लाना चाहिए ।कोई हमें कुछ भी कहता रहे उससे कुछ फर्क नहीं पड़ता जब तक हमारी मान्यता अनुभव सिद्ध होगी हम उस बात को स्वीकार करने लग जाएंगे ।
आज हमारे बच्चों को जो हम पढ़ाई पढ़ा रहे हैं विज्ञान के आधार पर उससे मोक्ष मार्ग संबंधी थोड़ा सा भी लाभ हमको नहीं होता मान्यता तो मानने सेे होती चलता है ।चाय काली होती है उनको उबलते पानी में डाल देते हैं । दूध डालकर
वह लाल हो जाते हैं
बालक समझदार है पर मझधार में
तो मोक्षमार्ग में हमें अपने अनुभव लेना प्रारंभ करना होगा हमारे कर्म सिद्धांत ऐसा है Ki गर्म चाय की पत्ती की भांति एक बार उदय उन्होंने तो दोबारा नहीं कर्म नहीं आएगा सत्ता में जब तक है तब तक जब तक कर्म युद्ध में आता है करमो उदय फिर से नूतन् कर्मों का बंधन हम अपने राग-द्वेष से कर लेते हैं एक बार करो मैं उदय में आ गया तो वह चाय के पत्ते की भांति फैक्ट्रियों के हो गया पर हम उसको फेंक नहीं पाते गांट लगाकर बांधे रखते हैं ऐसी हमारी म मान्यता हो गई है हमें अपने बच्चों को विश्वास दिलाना है कि अपनी मान्यता को बंद करें आत्मा देखने वाली है ही नहीं इसको विश्वास केइसको विश्वास के रूप में हम देख सकते हैं जय जिनेंद्र नदी कभी नौटकी नहीं फिर तू क्यों लौटता
जय जिनेंद्र