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Posts posted by Palak Jain pendra
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तुम पूछते हो मुझसे क्यो गुरु को ह्दय बसाते हो,
क्यो तुम अपनी राहो का मंजिल उन्हे बताते हो,
मेरे कई विचारों का उलझनों का अंत हुआ था,
जब मेरा मेरे विद्या गुरु से साक्षात् दर्श हुआ था।
तो कैसे ना मै अपने गुरु को अपने ह्दय बसाऊंगा,
अरे वो जिस राहे बोलेगे मै उस राहे चल जाऊंगा,
तन माना मेरा है पर प्राण वही है इस तन के,
मै शिवपथ की हर राहो मे बस उनको गुरु बनाऊंगा।
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चतुर्थ काल की चर्या कर जैसे मुनिवर युग मे रहते थे,
अपने संग लाखो प्राणी का उद्धार सहज ही करते थे,
निः सन्देह मेरे गुरुवर की चर्या उन सम कम नही है,
लग जाये उमर मेरी उनको वो मुझे प्रभु से कम नही है।
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ज्ञान दिवाकर धरती मे जिससे कण कण प्रकाशित है,
उनके तप संयम की गाथा गाता धरा और अम्बर है,
झूम जाती है प्रकृति वहा जहाँ पड़ते उनके चरण है,
प्रभु महावीर के वेश मे गुरु अद्भुत विद्या सागर है।
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ज्ञान दिवाकर धरती मे जिससे कण कण प्रकाशित है,
उनके तप संयम की गाथा गाता धरा और अम्बर है,
झूम जाती है प्रकृति वहा जहाँ पड़ते उनके चरण है,
प्रभु महावीर के वेश मे गुरु अद्भुत विद्या सागर है।
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जिनके पद चिन्हो मे चल सही राह का बोध हुआ,
एक अबोध बालक को भी सही ज्ञान का शोध हुआ,
मिल ही जाएगी उनसे मुक्ति हमको पूर्ण विश्वास है,
सम्पूर्ण समर्पण उनको कर दो उनमे ही भगवान है।
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जब गुरु महिमा की बात होती है,
तो सारी शब्द माला बोनी लगती है,
निःशब्द हो जाते है लेखक भी,
स्याही कलम फीके हो जाते है,
तब श्रद्धा से भरे भाव मन के,
भक्ति के अश्रु बन नैनो से झलकते है,
अन्तः मन से एक ध्वनि निकलती है,
गुरु अपना आशीर्वाद बनाये रखना,
मै तो आबोध बालक हूँ गुरुवर,
भवों से भटकते आज शरण आया हूँ,
कोई नही मेरा एक आपके सिवा,
मार्गदर्शन पाने आपकी शरण आया हूँ।
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जीवन के अंधेरे मे सूरज रूपी रौशनी हो तुम,
काली अंधेरी रात मे चांद सी चांदनी हो तुम,
निःशब्द से शब्दों मे भाव रूपी कलम हो तुम,
जिज्ञासा का समाधान सावल का हल हो तुम।
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जल चन्दन अक्षत पुष्प नैवेघ,
दीप धूप फल आया हूँ,
अब तक जो मैंने किये पुण्य,
उनका फल पाने आया हूँ,
यह जीवन अर्पण करता हूँ,
गुरु चरण रज दो हे स्वामी,
यह अर्घ समर्पित तुमको है,
चरणों मे जगह दो हे स्वामी।
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अनमोल गुरु है गुरु अनमोल,
हम पावन तीरथ कहते है,
अपने गुरु को मन मंदिर मे,
सबसे ऊपर रखते है।
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जिन्होंने आगम को दी नई पहचान है,
जो जीवन मे बनकर आए नई उड़ान है,
जिन्होंने ज्ञान से पाया जग का सार है,
उन्होंने जग मे लुटाया ज्ञान निसार है,
उनको वंदन हमारा लाखों बार है,
उनको वंदन हमारा लाखों बार है।🙏🏻
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दर्शन जब किये थे मैंने,
खुद को फिर ना रोक पाई,
एक टगर से देखा तुझको,
फिर भी कुछ ना कह पाई,
वो चाँद से मुखड़े पर तेरी,
मुस्कान बहुत ही प्यारी है,
तप संयम के इस बगिया की,
महक बहुत ही न्यारी है।
समीप आकर गुरुवर तेरे,
तुझमें ही मै खो जाती,
पर से मुझको क्या लेना,
तेरी ही मैं हो जाती,
इस बेरंग दुनिया मे,
तूने ज्ञान के रंग भरे,
तुझे पाकर ऐसा लगता,
कुछ भी पाना शेष नहीं। -
हे इस युग के शिरोमणि,
प्रातः स्मरणीय मेरे गुरु,
हे जैनों के जैनाचार्य,
सर्व हितकरी मेरे आचार्य,
हे संतो मे सर्व श्रेष्ट,
हम शिष्यों के देवाधिदेव,
हम करते तुमको नमस्कार,
ह्दय वेदी से नित बारम्बार,
तुम जैसा यहाँ शिष्य नहीं,
ना ही गुरु तुम सा समान,
हे त्याग मूर्ति हो तुम्हें प्रणाम,
व्रत के धारी हो तुम्हें प्रणाम,
हे वितरागी हो तुम्हें प्रणाम,
दिगंबर धारी हो तुम्हें प्रमाण,
हे बाल ब्रह्मचारी तुम्हें प्रणाम,
गृह त्यागी हो तुम्हें प्रणाम। -
मैं गुरुवर तुझ पर लिखना चाहु,
पर फिर भी कुछ ना लिख पाउ,
इतनी शक्ति कहा से लाऊ,
इतनी भक्ति कहा से लाऊ।
है शब्द नहीं गुणगान करुँ,
गुरु के गुण का बखान करुँ,
पर फिर भी लिखना चाहा है,
गुरु गुण को कहना चाहा है,
मुझमें इतनी वो बात कहा,
इतनी मुझमें अवकात कहा,
गुरु के गुण को बाँध सकूँ,
गुरु महिमा को जान सकूँ।
पर फिर भी शब्द पिरोये है,
भावों से उसे सजोये है,
तुम आकर उसमें प्राण भरो,
गुरु भक्ति से जान भरो।
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कलयुग मे मुझे आप मिले,
जैसे त्रेता मे सबरी को,
धन्य हुई हूँ आज मैं गुरुवर,
श्याम मिले जैसे मीरा को,
पचंम युग के भाग्य जगे है,
विद्या पुष्प के खिलने से,
हम जैनों का मान बढा है,
गुरुवर के रज चरणों से।
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गुरु वो जिसके पास जाकर लगे,
कहीं और जाना ही नहीं अब,
गुरु वो जिसके चरणों मे लगे,
समर्पण कर दूँ सब कुछ अब,
गुरु वो जो त्याग कि मूर्ति हो,
सादगी कि एक तस्वीर हो,
गुरु वो जो ज्ञान का एक अंश हो,
या विद्यासागर मेरे संत हो।
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जो स्वयं तीर्थ से कम नहीं,
और अरिहंत जैसे दिखते है,
जिनकी एक झलक पाने ही,
हम व्याकुल से हो उठते है,
जिसके सम्मुख सूरज चंदा,
और नभ स्वयं झुक जाते है,
जिनके एक दर्श से देखो,
चेहरे लाखों खिल जाते है,
जो स्वयं एक वैरागी हो,
और हमें वीतरागता बतलाते है,
ऐसे गुरु विद्यासागर को,
हम शत् शत् शीश झुकाते है।
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किसी गली किसी डगर मे,
भाग्य तुम्हारे खुल जाए,
सोचा है कभी तुमको तुम्हरे,
गुरुवर खड़े मिल जाए,
तो सोचो तुम अपने गुरु का,
कैसे चरण पखारो गे,
कैसे गुरु को अपने द्वारे,
अपने संग ले आओगे,
कैसे उनको अपने मन कि,
हर एक बात बताओगे,
कैसे अपने मन के अंदर,
गुरु कि छवि दिखाओगे।🙏🏻- 1
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जागे भाग्य है मेरे,
गुरु दर्शन हैं पाया,
सत्कर्मो के ही कारण,
गुरु भक्त बन पाया,
सौभाग्य होगा है मेरा,
गुरु हाथो कल्याण हो,
जब प्राण निकले मेरे,
गुरु नाम मेरे साथ हो।
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जिनकी चर्या मे तो देखो,
चारों अन्योग्य समाते है,
जिनकी भक्ति से हम खुद को,
प्रभु समीप ही पाते है,
जिनके गुणों की महिमा देखो,
देव लोक भी गाते है,
ऐसे गुरु विश्व वन्दनीय,
विद्यासागर ही कहलाते है।
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तीर्थंकर से शिव पथ दर्शी हो तुम,
निज ध्यानी हो, तप त्यागी हो,
अनियत विहारी हो, संघ नायक हो,
ग्रन्थ रचेता हो, मन के मर्मज्ञ हो,
पूर्ण दिगंबर हो, वैरागी हो,
गृह त्यागी हो, बल ब्रम्हचारी हो,
सर्व ज्ञाता हो, जग विधाता हो,
ज्ञान के सागर हो, मेरे गुरु विद्या सागर हो।
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गुरुवर तेरे गुण गाऊ मैं,
इतनी मुझमें बात कहा,
सूरज को दीप दिखाऊं मैं,
इतनी मेरी ओकात कहा,
गगन मे तारे अनेको है,
उनमे ध्रुव सी वो बात कहा,
जग मे संत अनेको है,
उनमे गुरु सी वो बात कहा।
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मेरे गुरुवर हो तुम,
मेरे भगवन हो तुम,
देवता के स्वरूप,
विद्यासागर हो तुम,
मेरे ऋषिवर हो तुम,
मेरे प्रभुवर हो तुम,
ज्ञानसागर स्वरूप,
विद्यासागर हो तुम,
परम परमेश्वर हो तुम,
पंच परमेष्ठी हो तुम,
अरिहंत सिद्ध स्वरूप,
विद्यासागर हो तुम,
मेरे आचार्य हो तुम,
जैनाचार्य हो तुम,
महा संत स्वरूप,
विद्यासागर हो तुम।🙏🏻
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मैंने देखें एक संत,
बिल्कुल दिखते अरिहंत से,
मेरे प्रभु वीर से,
हां साक्षात् महावीर से,
जिनका हर एक पद तो देखो,
धरती पर वरदान है,
हर जीवो की रक्षा हो,
ऐसे उनके भाव है,
हर जीवो पर करुणा है,
हर जीवो से प्यार है,
निःस्वार्थ भाव से हर जीवो का,
करते वो कल्याण है,
ऐसे संत इस युग के,
सबसे बड़ा वरदान है,
ऐसा लगता उनका जन्म,
हम सब पर उपकार है।
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कलयुग खुद मे इतराता,
विद्या गुरु के आने से,
चाँद खुद ही शर्माता,
गुरु कि झलक पाने से,
सूरज खुद ही झुक जाता,
गुरुवर के दिख जाने से,
ह्दय खुद ही खिल जाता,
गुरुवर के मुस्काने से।
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*आचार्य श्री विद्यासागर के अंतिम तीन दिन की गाथा*
In नमोस्तु गुरुवर
Posted
बहुत सुंदर लिखा है पढ़ते हुए आँखों मे सारे क्षण सामने आ गये 🙏🏻🙏🏻