Jump to content
मूकमाटी प्रश्न प्रतियोगिता प्रारंभ ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • कुण्डलपुर देशना 19 - कलयुगी साम्राज्य

       (1 review)

    आज के भारत की दशा को लक्ष्य में रखकर आचार्यश्री ने कहा कि जिस भारत के आदि में ब्रह्म-तीर्थकर आदिनाथ भगवान्, राम, हनुमान, पाण्डव आदि ने जन्म लिया था। जिन्होंने प्राणी मात्र के प्रति अहिंसा परोपकार दया प्रेम, करुणा का दिव्य संदेश जन जन को दिया। उन्हीं के भारत में आज एक दो नहीं अपितु ३६०३१ हजारों की संख्या में कत्लखाने खुल गये हैं। इनमें कुछ तो अत्याधुनिक हैं, जहाँ बीसों हजारों गाय बैल, भैंस, बकरी आदि पालतू जानवरों को फालतू मानकर बेरहमी से मौत के घाट उतार दिया जाता है और उनके भिन्न-भिन्न अंगों को बेचकर विदेशी मुद्रा को अर्जित करने का घृणित कार्य किया जा रहा है। विदेशी मुद्रा की भूख को मिटाने के लिये अहिंसक देश भारत से मांस का निर्यात किया जाना लज्जा की बात है। इस हेतु जहाँ एक दिन में ४,१६,००० प्राणियों को एक ही कत्लखाने में २-४ दिन तक भूखा - प्यासा रखकर हत्या कर दी जाती है। वहीं महिनों पहले हजारों लाखों प्राणियों को संग्रहीत कर मौत के लिये तैयार किया जाता है।

    राजा ही जब ना रहा, राजनीति क्यों आज?

    लोकतन्त्र में क्या बची,लोकनीति की लाज।

     

    जिन प्राणियों के सम्मुख कष्ट संकट हो उनके प्रति दया, अनुकंपा करना प्राणिमात्र का कर्तव्य है। किन्तु जिनका प्रतिदिन ही बेरहमी से कत्ल किया जा रहा है। उन जीवों की रक्षा हेतु हम सभी लोगों को एक साथ तत्पर होकर कार्य करना चाहिए। जिन पशुओं से दूध प्राप्त होता है। खेती बाड़ी होती है जो प्रत्येक कार्य में मनुष्य के सहयोगी रहते हैं। उन्हें आधुनिक कुतकों से अनुपयोगी सिद्ध किया जा रहा है।

     

    आज सत्य पलटा खा रहा एवं हिंसा का चारों ओर ताण्डव नृत्य हो रहा है। मूक होकर देखना कहीं आपका उस कार्य के प्रति समर्थन तो नहीं है? भारत से इन जानवरों का मांस तथा अन्य अंग बेचकर विदेशों से गोबर मंगाना इसी पांसे को पलटने की प्रक्रिया है। जिन्हें जनता ने चुनकर अपना प्रतिनिधि बनाया वे ही मंत्री आदि बनकर देश को उन्नत बनाने, विकासशील से विकसित बनाने हेतु गोमांस बेचकर, गोबर आयात करके एक ही रास्ता बता रहे हैं। जो भारत कभी सोने की चिड़िया कहलाता था वहाँ आज उन्नति के नाम पर लोहे के ढांचे फैक्ट्रियों में तैयार हो रहे हैं।

    भूल नहीं पर भूलना, शिव-पथ में वरदान।

    नदी भूल गिरि को करे, सागर का संधान।

     

    पूर्व में जहाँ प्रत्येक घर में तांबा पीतल कांसा या अन्य गिलट आदि के बर्तन होते थे। आज उनका स्थान लोहा स्टील एवं प्लास्टिक ने ले लिया है। सोने-चाँदी के बर्तन तो स्वप्न की बात है। आज तो आभूषण के रूप में इनके स्थान पर लोहा एवं प्लास्टिक आ गया है। यह भारतीय संस्कृति के विनाश की सोची-समझी चक्रव्यूह सदृश रचना लगती है।

     

    देश की रक्षा धर्म पालन, संस्कृति रक्षा अहिंसा से ही संभव है। तभी देश में रामराज्य आ सकेगा। अन्यथा रावण राज्य का ही प्रचार-प्रसार बढ़ेगा। सिंहासन पर बैठने वालों को धर्म तथा अधर्म की पहचान होनी चाहिए तथा दया का जीवन में क्या महत्व है। इसका अच्छी तरह से अध्ययन कर लेना चाहिए। जनता को वोट देने के पूर्व व्यक्ति का वास्तविक मूल्यांकन अनिवार्य है। अहिंसा के माध्यम से धर्म और संस्कृति जीवित रह सकती है। जिस देश में ३०-४० वर्ष पूर्व कुछ ही कत्लखाने थे, वहाँ इनकी आज भीड़ खड़ी कर दी गई है। कत्लखाने स्थापित करने का यही क्रम रहा तो इनकी संख्या हजारों को पार कर के लाखों में हो जायेगी और फिर पशु नहीं बल्कि मनुष्य और कारखाने ही होंगे। आचार्य श्री ने भूल की ओर संकेत किया है -

    निरखा प्रभु को, लग रहा, बिखरा सा अध-राज।

    हलका सा अब लग रहा, झलका सा कुछ आज।

     

    विश्व को अहिंसा का पाठ पढ़ाने वाली भारतीय संस्कृति ही सभी को आत्मा से परमात्मा बनने की यात्रा समझा सकती है। देश की उन्नति एवं संस्कृति की रक्षा हेतु उन बूचड़खानों (कत्लखानों) से घिरी हजारों-लाखों एकड़ भूमि में अन्य किसी प्रकार का उद्योग स्थापित करके यह मांस बेचकर किए जाने वाले घाटे का सौदा रोका जा सकता था। जो धार्मिक एवं आर्थिक दोनों ही दृष्टियों से गलत है। अत: वोट की राजनीति के कुचक्रों से ऊपर उठकर तामसिक मनोवृत्तियों पर लगाम लगावें और मति तथा बुद्धि को भ्रष्ट होने से बचाकर भगवान् आदिनाथ, भगवान् राम, वीर, हनुमान, पाण्डव एवं भगवान् महावीर आदि के जीवन से दिशा बोध ग्रहण करें ताकि समय रहते सही दिशा की ओर सही कदम बढ़ सकें।

     

    वैसे सामान्य तौर से पके आम की यही पहचान होती है वह हाथ के छुवन से मृदुता का अनुभव/फूटती पीलिमा से नयनों का सुख एवं फूल-समान नासा फूलती सुगन्ध सेवन से। फिर रसना चाहती है रस चखना मुख में पानी छूटता तब वह क्षुधित का प्रिय बनता यही धर्मात्मा की प्रथम पहचान है। मेरा सो खरा नहीं, खरा सो मेरा। इस जहाँ में तलवारों का वार सहने वाले लोग आज भी हो सकते हैं लेकिन फूलमालाओं का वार सहना कितना कठिन है। इसे सहने वाले विरले ही साधक मिलते हैं बन्धुओ!

    गगन गहनता गुम गई, सागर का गहराव।

    हिला हिमालय दिल विभो! देख सही ठहराव।

     

    "अहिंसा परमो धर्म की जय !"

    Edited by admin


    User Feedback

    Create an account or sign in to leave a review

    You need to be a member in order to leave a review

    Create an account

    Sign up for a new account in our community. It's easy!

    Register a new account

    Sign in

    Already have an account? Sign in here.

    Sign In Now


×
×
  • Create New...