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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • प्रवचन सुरभि 70 - एकता ही शक्ति

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    सम्यक दर्शन, ज्ञान, चारित्र की समष्टि सो मोक्ष मार्ग है। हरेक क्षेत्र में समन्वय की नीति काम करती है। एक कार्य की निष्पति के लिए अनेक कारण अपेक्षित हैं। इसीलिए आचार्यों ने मोक्ष मार्ग में सम्यक दर्शन, ज्ञान, चारित्र इन तीनों अंगों को कारण माना। हमारी शक्ति नष्ट नहीं हुई है, पर बिखरी हुई है, वह एक साथ हो जाये तो काम बन सकता है। आत्मा के पास ज्ञान, दर्शन, चारित्र का अभाव नहीं है, पर शक्ति बँटी हुई है। आचार्यों का ग्रन्थ लिखने का यही उद्देश्य था कि जो शक्ति बाहर बिखर रही है, उसे अन्दर लगा दिया जाये, तो काम बन सकता है। संसारी प्राणी की नीति बंटवारे में रही है, संग्रह में नहीं। संग्रह करेगा भी तो अकेला रहकर। शक्ति को केन्द्रीभूत करो, जब तक शक्ति केन्द्रीभूत नहीं होगी तब तक ध्यान भी नहीं होगा। ध्यान के लिए दर्शन ज्ञान चारित्र पूर्ण रूपेण एक होने चाहिए। आप लोगों की शक्ति यदि एक घर में रह जाये तो गाँव पर प्रभाव पड़ सकता है। कोई तकलीफ नहीं देगा अलग रहने पर किसी विशेष कार्य को नहीं कर सकते। नाचने, बजाने व गाने वाला तीनों एकता में होंगे तो ही आनन्द आयेगा, वरना नहीं। पृथक्-पृथक् परिणमन में रुचि, रस नहीं आता, हानि ही होती है। आप लोग शारीरिक, वाचनिक व मानसिक शक्ति को दिन भर बांटते रहते हैं, इनको एक रूप कर दें तो तीन लोक को जीत सकते हैं। हम अपने बल की उपयोगिता न करके दुख पा रहे हैं, भटक रहे हैं।

     

    अनेकान्त का मतलब एकता है। अनेकांत दृष्टि एकता का प्रतीक है। अनेकान्त का मतलब शक्ति को इधर उधर खर्च न कर समीचीन रूप में काम में लेवें। एकांतपने को लेकर जो चलते हैं, वे स्व का और पर का घात करते हैं। एक दूसरे का उपकार करने वाले, एक दूसरे का मूल्यांकन करने वाले स्व का और पर का कल्याण करने वाले हैं। बिजली जो हर समय काम आती है, उसका क्या रहस्य है? करेंट तभी आता है जब एकता को धारण करते हैं। दोनों तारों का सम्बन्ध होने पर बिजली प्राप्त होगी। Connection मिलने पर उजाला होगा। एकांत व अनेकांतवादी मिल जाये तो सुख ही सुख है। एकांतवादी आपस में नहीं मिल पायेंगे। शरीर के पास शरीर बैठने से काम नहीं होगा। मन के पास मन बैठने से काम होगा। मन का सम्बन्ध आत्मा के साथ है। धार्मिक क्षेत्र में भी शरीर-वचन के Control में होने के बाद मन का कंट्रोल न हो तो ज्ञान शक्ति को उपयोग में नहीं ला सकते। सुख की इच्छा करने वाले के लिए हरेक क्षेत्र में एकता की बड़ी आवश्यकता है। आप लोगों का बल जब बँट जायेगा तो कीमत नहीं रहेगी।

     

    दूसरों का महत्व कम करने के कारण ही आज भारत में जैनियों की संख्या धीरे-धीरे कम होती जा रही है। केवल पैसे से ही काम नहीं होता। जब तक आप समाज में रहेंगे, तब एक दूसरे का कार्य अपेक्षित है। पड़ोस में वैरी भी होगा तो भी आपकी सुरक्षा ही होगी। जंगल में एकांत स्थान में जहाँ पड़ोसी न होंगे तो नींद भी नहीं आएगी। हरेक व्यक्ति एक दूसरे की हरेक दृष्टि से सहायता करता रहता है। भारत में एकता का अभाव होने पर ही ब्रिटिश लोग आए और राज्य किया। एकता का अभाव महान् दुख का कारण है। सम्यक दर्शन, ज्ञान, चारित्र की एकता के लिए बार-बार आचार्य महोदय प्रयास कर रहे हैं। एक गाड़ी के दो पहियों में से एक का स्कू ढीला होने पर दूसरे का स्कू भी ढीला हो जाएगा और चल न सकेगा। बैल भी एक ही तरफ चलेंगे तो गाड़ी चलेगी। अत: जब तक हम शक्ति को केन्द्रीभूत नहीं करेंगे तब तक कुछ नहीं होगा। सूर्य की किरणों में शक्ति निहित है, पर फैली हुई है, जब एक स्थान पर केन्द्रित कर दी जाये तो यह प्रकाश जला भी देगा। लकड़ी से लकड़ी टकराएगी तब भी अग्नि होगी। एक ही स्थान पर जोर से पानी गिरने पर ही बिजली होती है। अभेदपने को अपनाने पर, एक दूसरे के मिलने पर ही तीसरी चीज पैदा होती है। लेकिन आपके दर्शन ज्ञान चारित्र पर मोह का साम्राज्य हो रहा है। जब ये तीनों मिल जायेंगे तो मोह भाग जायेगा। समष्टि, मिलने या केन्द्रीभूत का नाम ही ध्यान है। इसके लिए प्रयास करना है, तभी केवल ज्ञान रूपी बिजली पैदा होगी।

     

    शक्ति का सदुपयोग ही सम्यक दर्शन और शक्ति का दुरुपयोग मिथ्यादर्शन है। सम्यक दर्शन से सुख और मिथ्यादर्शन से दुख होता है। शारीरिक मानसिक चेष्टा से विश्व के ऊपर महावीर के उपदेशों का प्रभाव पड़ेगा। अभी तो सिर्फ आप इस कार्य के लिए शारीरिक व वाचनिक चेष्टा ही कर रहे हैं। धर्मचक्र का समादर शक्ति को एक करके करना। तन, मन, धन लगाकर कार्य करना है। निर्वाण महोत्सव के अन्दर यह एक महत्वपूर्ण कार्य है। यह धर्म चक्र सब जगह जाकर प्रभाव डालेगा, इसके द्वारा बहुमुखी प्रचार होगा। आप उसे देखकर, तन-मन-धन लगाकर अपने जीवन को सफल बना सकते हैं। अपने जीवन में यह अनमोल घड़ी आई है। अभीक्षण ज्ञानोपयोग को दुनियाँ के सामने रखने की चेष्टा ही प्रभावना है। तप भी प्रभावना का अंग है। भगवान् महावीर के रूप को तप के द्वारा सामने रखना। आकर्षित करने योग्य कार्य, धर्म के समीप लाने योग्य कार्य करने वाला व्यक्ति पूजा कर प्रभावना कर सकता है। ऐसा करने पर अहिंसा तत्व को हरेक व्यक्ति जान सके, अपना सकेगा। धर्म चक्र आपके यहाँ भी आएगा, यह सौभाग्य की बात है। जब आवे तब बहुत एकता की आवश्यकता है।


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    सम्यक दर्शन, ज्ञान, चारित्र की समष्टि सो मोक्ष मार्ग है। हरेक क्षेत्र में समन्वय की नीति काम करती है। एक कार्य की निष्पति के लिए अनेक कारण अपेक्षित हैं। इसीलिए आचार्यों ने मोक्ष मार्ग में सम्यक दर्शन, ज्ञान, चारित्र इन तीनों अंगों को कारण माना।

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