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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • तपोवन देशना 21 - देश की रक्षा धन से या धर्म से

       (3 reviews)

    जब आप लोगों को प्यास लगती है तो कारण खोज लेते हैं कि क्यों लगी और कैसे शांत होगी। जब शारीरिक दर्द होता है तो कारण की खोज कर लेते हैं उसी प्रकार हमें अपने जीवन में मोक्ष के कारणों को खोजना होगा।

     

    जब तर्जनी को दूसरों की ओर करते है तो दोषों की ओर संकेत करते हैं। जब ऊपर की और हिलाते हुए करते हैं तो संकेत प्राप्त होता है कि खबरदार ऐसा किया तो, यह दंड का प्रतीक बन जाती है। यही तर्जनी जब स्थिर ऊपर की ओर आती है तो भगवान् की ओर संकेत करती है। इस प्रकार तर्जनी साम, दाम, दंड, भेद और आत्मा परमात्मा आदि सभी की ओर संकेत करती है।

     

    विज्ञान प्रत्येक कार्य शोध परख करके ही स्वीकार करता है। जब सभी प्रकार के पुरुषार्थ कर लेने के बाद कार्य सिद्ध नहीं होता तो उसे भी भगवान् के अस्तित्व को स्वीकार करके उस पर छोड़ना पड़ता है। जैसे जब किसी डॉक्टर के यहाँ जाओ तो वह कहता है कि मैं पूरा पुरुषार्थ कर रहा हूँ किन्तु सफलता सब उपर वाले की कृपा से संभव है। पुरुषार्थ तब तक होना चाहिए जब तक सफलता नहीं मिल जाती। सफलता मिल जाने पर अभिमान नहीं होना चाहिए।

     

    पुरुष अभिमानी होता है, अभिमान उन्नति में बाधा खड़ी कर देता है। आज आदमी अभिमान उपासना में भी कर जाता है। करने योग्य कार्य करना चाहिए उसी में अपने चित्त को लगाये रखना चाहिए। भगवान् की उपासना जब कभी नहीं होती किन्तु योग्य समय पर की जाती है।

     

    विमान चालक बाहर रास्ता नहीं देखता किन्तु भीतर लगी हुई दिशा बोधक घड़ी (चुम्बकीय सुई) को बार-बार देखता है। वह सोता नहीं। जो सो जाता है वह खो जाता है। समुद्र में कोई साइन बोर्ड नहीं रहते जिसे देखना हो। भीतर लगी घड़ी से तूफान आदि के संकेत भी मिल जाते हैं फिर भी कई घटनायें घट जाती हैं।

     

    नीतिकारों ने कहा है धन और सत्ता के मिलने से व्यक्ति पागल हो सकता है और दशा बिगड़ जाती है। दशा ठीक करना चाहते हो तो दिशा बोध प्राप्त करो। संतों के डायरेक्शन (दिशा) को बहुत महत्व दिया है। यदि दिशा सही नहीं मिले तो दशा कभी सुधर नहीं सकती बल्कि और दुर्दशा होती चली जाती है। बहुत मात्रा में शस्त्र होने से विजय नहीं मिलती किन्तु जब उस शस्त्र को सही-सही चलाना आता हो तब विजय प्राप्त होती है।

     

    धन के माध्यम से आगे बढ़ना विदेश नीति है इसे आप भूल जाओ क्योंकि धन जितना अधिक बढ़ेगा पागलपन उतना अधिक बढ़ेगा। जैसे पेट भरने के बाद एक रोटी अधिक हो जाय तो चैन से नहीं सो सकते हैं। आज भारत की जो धन की नीति बन गई है वह ठीक नहीं उसे तो अपनी वही धर्म नीति बनाये रखना चाहिए। धर्म नीति से ही सब ठीक किया जा सकता है। धन भारत के लिये पागलपन और पराजय के लिये कारण बन सकता है। जिस दिन भारत देश से धर्म उठ जायेगा उस दिन कुछ नहीं बच सकता। भगवान् ने हमें जागृत किया है यदि उसे भुला दिया तो बहुत अनर्थ हो जायेगा। आर्टिफिशियल गैस तब तक काम कर सकती है जब तक आपके फेफड़े कार्य कर रहे हों। इसी प्रकार धन आपके लिये तब तक सहाई हो सकता है जब तक तुम्हारे अन्दर धर्म है। (धन आर्टिफिशियल गैस के समान है और धर्म फेफड़े के समान है)

    Edited by admin


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    PreetiJain

       1 of 1 member found this review helpful 1 / 1 member

    आचार्य श्री जी के पावन चरणों में कोटि कोटि नमोस्तु 🙏🙏🙏🙏🙏

     

    अब अपने जीवन की सही दिशा जानने के लिए आचार्य श्री जी की वाणी ही मार्गदर्शक हैं।

     

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    आचार्य श्री के पावन चरणों में कोटि कोटि नमोस्तु। आचार्य श्री जी के प्रवचनों से हम बहुत कुछ सीखने का प्रयास कर रहे हैं 

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