Jump to content
नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • प्रवचन सुरभि 80 - बात तो सही है !

       (1 review)

    अभी आपने सुकौशल महाराज की प्रेरणास्पद कथा क्षुल्लकजी द्वारा सुनी। जब कभी भी मैं इस कथा को सुनता हूँ, तो मेरा वैराग्य बढ़ जाता है, पर आपको वैराग्य क्यों नहीं होता? राजकीय सम्पदा को छोड़कर, सुकुमार शरीर की ओर ध्यान न देते हुए सुकौशल महाराज ने वैराग्य को अपनाया। जीव का हित-अहित निष्कषाय और कषाय पर निर्भर है। इस संसारी प्राणी का हित धर्म के अलावा तथा अहित अधर्म (पाप) के अलावा किसी में नहीं है। जब निष्कषाय भाव जागृत हो जाएँगे, तब सारी पर्यायें नष्ट हो जाएँगी।

     

    धर्म के आधार से श्वान भी विकास को प्राप्त होकर पूज्य बन जाता है, पर यदि श्रेष्ठ पुरुष भी कषायी हो जाये तो नीच बन सकता है। आत्मा का हित अहित किसमें है ? यह विचारो कि आत्मा के अहित विषय-कषाय और हित वैराग्य ज्ञान है। आप कषायों को अच्छा और निष्कषाय को कष्ट का कारण मानते हैं। जब आप को यह विश्वास हो जाएगा कि राग द्वेष जो कर रहे हैं, वे दुख का कारण हैं, तो आप लोग राग-द्वेष कषाय को छोड़ देंगे। विषय को विष के समान और कषाय को कसाई के समान जब समझ लेंगे, तो जिस प्रकार आप जहर (विष) और कसाई से दूर रहने की कोशिश करते हैं। उसी प्रकार विषय कषाय से दूर रहने की चेष्टा करेंगे। तभी आत्मा पर विश्वास कर प्रभु के बताए पथ पर अग्रसर होंगे।

     

    आप सुकौशल मुनि की कथा को सुनकर वैराग्य नहीं बढ़ाते। दुर्लभतम नर जन्म मिला इसमें भोग विलास की ही बातें हो तो जीवन में अन्धकार ही बढ़ेगा। भेद ज्ञान होने पर ही वह अन्धकार मिटेगा। आपने वीतराग पथ को दुख का मूल ही माना, लेकिन अब इसे सुख का कारण समझने पर भी इसे पकड़ने की चेष्टा नहीं कर रहे हैं। जिस प्रकार बच्चा बार-बार दीपक को पकड़ना चाहता है, लेकिन एक बार दीपक से हाथ जल जाने पर वह दीपक को नहीं पकड़ना चाहेगा। आपका हाथ अभी जला नहीं विषय रूपी दाह से इसीलिए आनन्द का अनुभव कर रहे हैं। जिस प्रकार दाद खुजली को खुजाने पर पहले तो मजा आता है, पर बाद में ज्यादा खुजाने पर खून भी निकल जाता है, बीमारी बढ़ जाती है। इसी प्रकार विषय कषाय दुख की ओर ले जाते हैं। कहा भी है कि-

     

    पर्याय को क्षणिक को लख मूढ़ रोता,

    सामान्य को निरखता, बुध तुष्ट होता।

    विज्ञान की विकलता दुख क्यों न देगी,

    तृष्णा न क्षार जल से मिटती बढ़ेगी।

    आप समझते हैं कि विषयों से तृष्णा नहीं बढ़ेगी। अगर १ किलो जल में १ किलो नमक मिला दे तो उसे पीने से प्यास नहीं बुझेगी। विषयों का विमोचन कर विषयों को मिटा सकते हैं। २ दिन तक तो भूखे व्यक्ति को भूख लगेगी उसके बाद भूख नहीं लगेगी। रोटी खाने से मात्र २-४ घण्टे भूख मिटा सकते हैं। विषयों को भोगेंगे तो तृष्णा बढ़ेगी। अग्नि में ईधन डालने पर अग्नि बुझेगी नहीं, उद्दीप्त होगी। कर्म के उदय से फल मिटता है, उसमें वीतरागी, समता के धारक हर्ष-विषाद नहीं करते। खारे जल से प्यास मिटेगी नहीं, उद्दीप्त होगी। आप लोग समझते हुए भी नहीं समझ रहे हैं। एक बार विज्ञान जागृत हो जाएगा तो भी ज्यादा कहने की जरूरत नहीं। आपको एक बार भी अनुभव हुआ कि विषय विष के समान है। सामने वाले को गुस्सा तभी आता है, जब विरोध होता है। चुप रहने पर सामने वाला भी चुप होकर बैठ जायेगा।

     

    जब तक आपको नरकों की वेदना याद नहीं आती, तब तक विषय कषाय छूटते नहीं। भेदविज्ञान के उपरांत व्यक्ति विषय कषाय की तरफ नहीं जाता। अगर जाना भी पड़े तो जिस प्रकार आप घृणा योग्य स्थान पर नाक पकड़ जल्दी वहाँ से जाना चाहेंगे, उसी प्रकार वह भी जाएगा। यह लोभी जीव वैराग्य दृश्य को देखकर भी विषयों की ओर ही जाता है। मनुष्य गति मिलने पर भी भेद विज्ञान न हो तो कुछ नहीं होता। विषयों में बहुत मजा मानता है, ठण्डी-ठण्डी लहर का अनुभव करता है। मोह का साम्राज्य तब तक होता है, जब तक अच्छे को बुरा और बुरे को अच्छा मानता है। जिनेन्द्र भगवान हैं, स्वाध्याय के लिए शास्त्र है, पर परिणति विषय कषायों की ओर जा रही है, अत: विषयों में आसक्ति कम होनी चाहिए। एक बार अन्दर से चिंगारी बाहर आ जाये, भेद विज्ञान जागृत हो जाये तो मोह रूपी अन्धकार नहीं रहेगा। मोह मद पी रखा है, तभी दूसरे ने आप पर अधिकार जमा रखा है।

     

    ज्योत्सना जगे, तम टले नव चेतना है,

    विज्ञान-सूरज छटा तब देखना है।

    देखे जहाँ परम पावन है प्रकाश,

    उल्लास हास, सहसा लसता विलास।

    विज्ञान रूपी सूर्य के उदय होने पर जीवन में बसन्त-सी बहार आ जाती है, सुख का अनुभव होने लगता है। जिसके जीवन में ऐसा प्रकाश नहीं है, वह कहीं भी चला जाये उसे अन्धकार ही मिलेगा। अन्धे के सामने अन्धेरा है, सवेरा देखने के लिए उसके पास आँखें नहीं है। ये यन्त्र, शास्त्र वैराग्य के दृश्य हैं। बोध आ जाये तो क्रोध मिट जाएगा। आपमें क्रोध की बाढ़ आ रही है, विषय को भोगने की आकांक्षा है। प्रतिकूल वस्तु को अनुकूल मत समझो, अपनी दृष्टि को मांजो। जब तृष्णा में विकास होगा तो विज्ञान की विकलता दुख ही देगी, जीवन में रुदन रहेगा। क्योंकि उसका ज्ञान जब विपरीत है तो उसके विपरीत फल मिल रहा है। अज्ञान दुख का मूल कारण है, विज्ञान सुख का कारण है। हेय को छोड़ना होगा और उपादेय को पाना होगा। सही रास्ते पर लग जायें तो समझो भेद विज्ञान हो गया। विषय-कषायों से मुख मोड़ो तभी आत्म-दर्शन होगा वरना तो दुख ही दुख है।


    User Feedback

    Create an account or sign in to leave a review

    You need to be a member in order to leave a review

    Create an account

    Sign up for a new account in our community. It's easy!

    Register a new account

    Sign in

    Already have an account? Sign in here.

    Sign In Now

    अज्ञान दुख का मूल कारण है, विज्ञान सुख का कारण है। हेय को छोड़ना होगा और उपादेय को पाना होगा। सही रास्ते पर लग जायें तो समझो भेद विज्ञान हो गया। विषय-कषायों से मुख मोड़ो तभी आत्म-दर्शन होगा वरना तो दुख ही दुख है।

    Link to review
    Share on other sites


×
×
  • Create New...