तम टला,
उडुगण चला,
प्राची अरुणिमा हो चली,
चला मंद, मंद, सुगंध पवन
जहाँ पवित्र पावन, पावा उपवन,
पवन की इच्छा है,
अच्छा होगा,
होगा स्वच्छ मम जीवन भी,
एक बार सहर्ष,
वीर चरण स्पर्श,
अन्तिम दर्शन,
कर लू!!
न जाने अनागत जीवन!!
क्या विश्वास?
आया न आया शवास।
लता के चल पर
फूले, फूल दल,
फूला न समाते,
स्वयं वीर चरणों में,
करते समर्पण
स्मित सुमन |
सन्मति के पद पयोज पर
पयोज- पराग- लोलुपी,
भव्य अलिगण,
गुण गुण गुंजार,
नाच नाचते,
मान रहे,
हम अमर बनेगे,
नहीं मरेगे,
जो किया सुधा सेवन,
अपूर्व संवेदन |
धरती अनिमेष निरखती ,
युगवीर को , धीर को ,गण गंभीर को ,
स्वंय को धन्यतमा मानती ,
दर्ग बिन्दुओ से ,
सिंधु समान महावीर के ,
कर, पाद प्रक्षालन |
पावा उद्यान ,
आरूढ़ हो ध्यान यान ,
किया वर्धमान ने निज धाम कि ओर ,
जो लोकग्र्स्थिति है ,
द्रुत गति से प्रयाण।
कर लो वीर! स्वीकार,
मम नमस्कार,
बने वे शीघ्र साकार,
उठते जो बार-बार विचार,
मम मानस तत्न पर ।