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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • प्रवचन सुरभि 82 - आप भी-तर जाओ

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    संसारी प्राणी यात्रा कर रहा है, जिस प्रकार आप लोग कुछ पाथेय लेकर यात्रा करते हैं, उसी प्रकार यह प्राणी भी अपनी यात्रा में कुछ कमाता कुछ खर्च करता है। अनादि से सुख की खोज के लिए जन्म मरण कर भ्रमण करता है। अनेक बार इसने कुछ पाथेय लेकर यात्रा की किन्तु उस पाथेय का स्वाद इसे नहीं आया सुख का अनुभव नहीं किया। दुख क्यों हो रहा है, सुख क्यों नहीं ? इसके लिए कहा है -

     

    दाम बिना निर्धन दुखी, तृष्णा वश धनवान।

    कहीं न सुख संसार में, सब जग देख्यो छान ॥

    संसार में कहीं सुख नहीं है, सब जगह देखा, दुख का ही अनुभव किया। कुछ अपने आपको धनवान समझते हैं। जिन्होंने सुख प्राप्त कर लिया है, उनका अनुभव है कि जब तक धन नहीं, तब तक दुख होता है और तृष्णा वश जो धनवान है, वह भी इतना ही दुखी है कि जितना निर्धन होता है। अन्त में यही कहना पड़ा कि संसार में सुखी कोई नहीं है। कहा है कि -

     

    चक्री बने, सुर बने, तुम सर्वभौम,

    पे अंत में फल मिला, सुख का विलोम।

    जो अग्नि में सहज शीतलता कहाँ है,

    जो उष्णता धधकती रहती वहाँ है ॥

    हम शीतलता के लिए जा रहे हैं, पर अग्नि के सामने शीतलता की अनुमति नहीं होगी। स्वर्गीय सम्पदा व चक्रीपने में भी सुख का अनुभव नहीं हुआ, तो यहाँ पर धन को लेकर सुख का अनुभव कैसे हो सकता है? पर धर्म को न चाहने वाला तथा धन को चाहने वाला यहाँ भी दुखी है तथा आगे भी दुखी ही रहेगा, वह तृष्णा वश दु:खी है। जैसे भूख लग रही हो तो एक आधा घण्टा भूखा और रहा जा सकता है, पर रोटी का टुकड़ा दिखा दे तो भूख ज्यादा बढ़ जायेगी। तृष्णा वश धनी ज्यादा दुखी हो जाता है। धन के उत्पादन में दुख है उसके संवर्धन में दुख है। पानी अन्दर आता है तो कम गति से तथा बाहर ज्यादा तेज गति से जाता है। धन भी उसी प्रकार आते वक्त धीरेधीरे कम मात्रा में आता है, पर जाते वक्त अधिक मात्रा में जल्दी-जल्दी जाता है, तो दुख होता है।

     

    धन के उपासक के आर्त-रौद्र परिणाम हो जाते हैं, खाना-पीना सोना भी छूट जाता है। यह जन्म-मरण आज का व्यवसाय नहीं किन्तु बहुत दिन का है। यह निश्चित मानो वह घड़ी आने वाली है, जिस दिन शरीर छूटेगा, परन्तु उसके पूर्व पुरुषार्थ करना है। जो मरण को प्राप्त करता है तो वह जन्म भी धारण करेगा कहा है कि ‘मरता है तो मर जा, जीते जी कुछ कर जा”। कुछ न कुछ करना है, पर धन का संचय नहीं। हम अपनी परम्परा को छोड़ने को तैयार नहीं है। हम जानते हैं कि फलाना आदमी मर गया हमारा भी नंबर आएगा। मरण तो निश्चित है, पर जीवन में करने की नहीं सोचते। जिनको यह विश्वास हो जाये तो फिर 'स्वार्थ त्याग की कठिन तपस्या बिना खेद जो करते हैं, ऐसे ज्ञानी साधु जगत के दुख समूह को हरते हैं।”

     

    जीवन में खुद के दुख को मिटाते हुए दूसरों के दुख को, तड़फन को मिटाने की चेष्टा करें। जब तक जीवन है, तब तक करें, मौत आने पर तो वह रुकेगी नहीं। काल भी पूर्व सूचना देकर आता है। जब तक सुरक्षित है तब तक काम कर लो। काल पर विजय प्राप्त करो, कुछ करके बताओ। मरना निश्चित है, उसके उपरांत जीना भी है। जन्म मरण छूटे, इसके लिए दुख दूर करने के लिए यही रास्ता है कि जीवन को अपने पीछे लगावें। धर्म को आदर्श को सामने रखें, धन को पीठ पीछे रखें। ऐसा कोई भी नहीं है जो धन-धन नहीं कहता है। धन के अर्जन व उसके संवर्धन के लिए आप बहुमूल्य समय को लगा देते हैं और मरण का आह्वान करते हैं, मरण के पास जाते हैं। धर्म के संवर्धन से काल धीरे-धीरे सरकता है, आयु बढ़ जाती है। प्राय: सभी को काल की चेतावनी Warning मिलती है। बाल सफेद हो जाना यह 1st Warning है। काले भी थोड़े ही रहते हैं। दूसरे दांतों का टूटने लगना है, आज कल इसे छिपाने के लिए नकली दांत भी लगा लेते हैं। तीसरी चेतावनी आँखों से कम दिखना है, इसके लिए भी चश्मा लगा लेते हैं। फिर कमर झुकने लगती है और लकड़ी भी हाथ में ले ली जाती है। काल अब जल्दी करता है, अत: ऐसा कार्य करो कि जिससे जन्म-मरण की प्रणाली का सत्यानाश हो जाये, तब जीवन रहेगा। जन्म जीवन नहीं है, अत: रहने की आपको आशा है, पर मरने की नहीं। जो जन्म की सुरक्षा नहीं करता वह मरण से नहीं डरता। जीवन को धन के लिए न बेची। जीवन निर्माण के लिए समय देंगे तो वह निर्माण, मुक्ति, पाथेय का काम करेगा। आप लोग समय-समय पर उस सामग्री को बटोर रहे हैं, जिससे दुख की ही वृद्धि हो रही है, सुख का नाम नहीं है। हरेक क्षेत्र में हरेक समय देखा, पर सुख नहीं मिला।कहा भी है कि -

     

    ना नीर के मंथन से नवनीत पाते।

    अक्षण्ण कार्य करते थक मात्र जाते ॥

    नीर के मंथन से थक जाएँगे, हाथ दुखने लगेगा, पर नवनीत नहीं मिलेगा। वह घड़ी आने वाली है जब शरीर छूटेगा। अत: ऐसे कार्य, पुरुषार्थ करो, स्वार्थ त्याग की कठिन तपस्या करो प्रेरणा मेरी होगी। आप प्रेरणा प्राप्त करते हुए भी लाभ नहीं उठा रहे हैं, वास्तविक मूल्यांकन नहीं करते हैं। दुनियाँ पर संकट न आवे, जब यह भाव जागृत हो जायेगा, तभी वस्तु तत्व को देख सकेंगे। जब यह भाव नहीं, तब तक धन के भाव तथा धन की लहर रहेगी। हम धन को गौण कर धर्म की बात करें। जब दूसरों पर संकट नहीं तब दुख का अनुभव नहीं होगा। आप जितने-जितने दुख को दूर करेंगे तभी समझो कि धर्म रूपी तीर्थ में प्रयास कर रहे हैं। मात्र धर्म की ओर दृष्टि रखकर कार्य करेंगे तो कर्म का क्षय होगा, धर्म के चिह्न मिलेंगे, अन्दर की शक्ति बाहर आएगी। आत्मा की ओर दृष्टिपात करो, तभी आनन्द की अनुभूति होगी।


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    धन को गौण कर धर्म की बात करें। जब दूसरों पर संकट नहीं तब दुख का अनुभव नहीं होगा। आप जितने-जितने दुख को दूर करेंगे तभी समझो कि धर्म रूपी तीर्थ में प्रयास कर रहे हैं। मात्र धर्म की ओर दृष्टि रखकर कार्य करेंगे तो कर्म का क्षय होगा, धर्म के चिह्न मिलेंगे, अन्दर की शक्ति बाहर आएगी। आत्मा की ओर दृष्टिपात करो, तभी आनन्द की अनुभूति होगी।

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