आज इस विज्ञान के युग में भी धरती के साथ अन्याय हो रहा है, पर्यावरण का सत्यानाश हो रहा है। जल, जंगल, जमीन, जानवर और जनता प्रदूषित हो चुकी है। पर्यावरण की खराबी के लिए सबसे बड़ा प्रदूषण रासायनिक खादों का है। इन जहरीली रासायनिक खादों के कारण फसल प्रदूषित हो चुकी है। फल, सब्जियाँ, अनाज प्रदूषित हो चुके हैं, जल और वायु प्रदूषित हो चुके हैं। आज हमारे पास न शुद्ध अनाज है और न जल । जो अनाज हम खा रहे हैं, वह जहरीला है क्योंकि उसमें भी जहरीले रासायनिक खादों का अंश मिला है। कीटनाशक दवाएँ भी पर्यावरण को प्रदूषित कर रही हैं। आज अनेक राष्ट्रों में जहरीली दवाएँ पर्यावरण को प्रदूषित कर रही हैं। आज अनेक राष्ट्रों में अनेक जहरीली दवाओं एवं कीटनाशकों पर प्रतिबन्ध लग चुका है लेकिन यह तो भारत है, जहाँ सब कुछ खुल्लम-खुल्ला बिक रहा है। हमारी बीमारियाँ इन्हीं जहरीली उर्वरकों का परिणाम हैं। आज आवश्यकता इस बात की है कि पर्यावरण को प्रदूषण से बचाया जाए और इसके लिए तमाम रासायनिक खादों एवं कीटनाशकों, दवाओं के प्रयोग पर प्रतिबन्ध लगा दिया जाए।
ये रासायनिक खादें धरती को जला रही हैं, धरती की उपजाऊ शक्ति को नष्ट कर रही हैं, धरती के पास जो अपनी निजी शक्ति है, उसको तबाह कर रही हैं। यदि इसी प्रकार इन रासायनिक खादों का प्रयोग होता रहा तो एक दिन सारी धरती बंजर हो जायेगी। जहाँ आज फसल उगती है, वहाँ पर घास तक पैदा नहीं होगी। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है कोल्हापुर, सांगली (महाराष्ट्र) के पास की हजारों एकड़ जमीन, आज बाँझ हो चुकी है। वहाँ न तो फसल होती है और मकान ही बना सकते हैं क्योंकि दल-दल हो चुकी है, उसमें क्षार की मात्रा अधिक बढ़ चुकी है। भले आज इन खादों से फसल की मात्रा बढ़ी है लेकिन आगामी समय में उन खेतों की स्थिती बड़ी खराब हो जायेगी।
-१९९७, नेमावर