सत्पुरुषों की कथाओं को पढ़कर के आँखों में से विकृत पानी को निकाल दीजिए और उन कथाओं से संस्कार लीजिए। तब संस्कृति की रक्षा कैसी होती है; ये सामने आ जाएगा। बच्चों में संस्कार देने के लिए गर्भगृह में आने के पूर्व से ही पुरुषार्थ किया जाता है। यह सब सीताजी आदि सतियों के जीवन से आप सीख सकते हैं। आज क्या संस्कार डाले जा रहे हैं? विदेशी संस्कारों के कारण भारतीय जीवन में विकृतियाँ आ रहीं हैं। मैं आलोचना नहीं करता हूँ, लेकिन आपके लोचन इसके बिना खुल भी नहीं रहे हैं। आप सुन भी लेते हैं, किन्तु गौर नहीं कर रहे हैं। वह समय आएगा, जरूर आएगा; जब आप इन पक्तियों की याद करेंगे।
यह ध्यान रखना "विद्याकालेन पच्यते, श्रवणं काले पच्यते''- यह सुना होगा आपने, लेकिन अब तो विद्याकाल में ही फल चाहते हैं, पुरुषार्थ करना नहीं चाहते।
-३१ जुलाई २o१६, भोपाल