जिस तरह पुराने रेडियो में हम एक स्टेशन लगाते थे और यदि हाथ हिल जाता था तो दूसरा स्टेशन लग जाता था तब गीत की जगह कोई अन्य कार्यक्रम सुनाई देने लगता था क्योंकि स्टेशन की रेंज बदल जाती थी और ये रेंज ऊपर लगे एरियल के माध्यम से मिलती थी। ठीक उसी प्रकार हमारे विचार रूपी विभिन्न स्टेशन हैं जो हमारे मस्तिष्क रूपी एरियल के माध्यम से बदलते रहते हैं। अच्छे विचारों वाला स्टेशन यदि लगाना है तो मस्तिष्क को निर्मल बनाना होगा। स्थिरता लाने पर ही हम एक विचारों वाले स्टेशन पर टिके रह सकते हैं अन्यथा भटकते रहेंगे फिर हम जैसे गुरुओं की कूबत भी नहीं है कि आपको भटकाव से रोक सकें।
आजकल की धारणाएँ नकल पर आधारित होती जा रही हैं इसलिए अक्ल को ठण्डे बस्ते में डाल दिया है। नकल से भौतिक परीक्षा तो पास की जा सकती है परन्तु जीवन की असल परीक्षा बिना अक्ल के पास नहीं की जा सकती है। अपनी क्षमताओं का बेहतर उपयोग ही आपको सही दिशा और दशा प्रदान कर सकते हैं इसलिए अपनी क्षमताओं को बेहतर से बेहतर बनाएँ।
-२३ नवम्बर २०१६, बुधवार, भोपाल