शान बाहर नहीं हमारे भीतर है; यह ज्ञान होना भी पहले आवश्यक है। भारत का एक इतिहास रहा जब भी पढ़ते हैं, तो गर्व से मस्तक ऊँचा हो जाता है। भारत के पास ऐसी क्षमता है, कला है, वह कुछ भी नहीं रखते हुए भी सब कुछ रखता है। भारत कुछ भी माँगता नहीं है, लेकिन कभी-कभी प्रमाद (आलस्य, अज्ञानता) के कारण अपने आदर्श मार्ग से भटक जाता है और विश्व की भटकन में शामिल हो जाता है। इसलिए आवश्यक है पहले अपने आप को जानना, पहचानना और संभालना। तभी दूसरे को संभाल सकते हैं। यदि भारत स्वयं संभल जाए तो विश्व तो संभल ही जाएगा। भारत को विश्वगुरु बनने में समय नहीं लगेगा।
हम विपरीत दिशा में काम करते हैं। सही दिशा में नहीं इसलिए अपने ज्ञान को सही स्वरूप में ढाल नहीं पाते हैं। आचरण के माध्यम से अहित का अभाव होता है और हित का संपादन भी संभव है। भारत में श्रम होता है। इस कारण कोई अनाथ नहीं है। श्रम तो स्वास्थ्यवर्धक भी है। आज इस युग में संख्या की अपेक्षा बहुत विद्यालय खुल गए हैं। बुला बुलाकर भर्ती किया जा रहा है, लालच भी दिया जा रहा है, गाँव-गाँव में विज्ञापन किए जाते हैं, गाँव के विद्यार्थी सीधे-साधे होते हैं, वे ऐसे एजेंट के मकड़जाल में फेंस जाते हैं।
विद्यार्थी विद्या के लिए हैं। व्यवसाय के लिए नहीं। आज बड़े-बड़े व्यवसायी हो गए हैं। उन्होंने विद्या को ही व्यवसाय बना लिया है। अब तो विद्यालय से विद्या का ही लय (विलय) हो गया है जबकि विद्या का अर्थ है-अज्ञान का विनाश एवं ज्ञान का प्रकाश। आज तो विद्यालय की शिक्षा की तरह चिकित्सा में भी बहुत बड़ा बदलाव हो गया है। हर जगह व्यवसायिक दृष्टि हो गई है। हम शिक्षक एवं शिक्षिकाओं से यह बात कहना चाहेंगे कि बागवान की तरह पेड़ की रक्षा करें। बच्चों को श्रम करना सिखाएँ क्योंकि बच्चों में बहुत कुछ करने की क्षमता होती है। आज तो सब वेतन की ओर देख रहे हैं। चेतन को भूलते ही जा रहे हैं और वतन बेचारा चिल्लाता ही रह जाता है। मुरझा रहा है भारत, उसे बागवान रूपी शिक्षकों की जरूरत है। जो गम्भीरता से देखें भारत क्यों मुरझा रहा है और अपनी संस्कृति को क्यों खो रहा है? योग्य विद्यार्थियों को भी लॉन लेना पड़ रहा है। विद्यालयों को अपनी कमाई करने के लिए विद्यार्थियों को लॉन लेने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। इतना सब कुछ करने के बाद भी वह विद्यार्थी पढ़-लिखकर ४-५ हजार रुपए के लिए हाथ फैलाता है। यह भारत के लिए शर्मनाक और दयनीय स्थिति है। इससे तो देश का भविष्य अन्धकारमय बनेगा।
आये दिन अखबारों के समाचार लोग लाकर बताते हैं। विद्यालय पर विद्यालय खुलते ही जा रहे हैं। पता चलता है कि ये सारे के सारे विद्यालय, महाविद्यालय, विश्वविद्यालय चाहे वे चिकित्सा के हों, प्रबन्धन के हों, इंजीनियरिंग के हों, प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष नेताओं के द्वारा खोले जा रहे हैं। क्यों खोले जा रहे हैं? ये आप सब जानते हैं कि जिसने पूँजी लगाई है वह उससे कई गुना कमाने की कोशिश करता है।
जिस देश में सरस्वती का स्वागत नहीं, उस देश में लक्ष्मी भी नहीं रहेगी। लक्ष्मी बरस भी जाए तो वह रुकने वाली नहीं। किसी न किसी रूप में वह भाग जाती है। अर्थ के लिए कहीं परमार्थ को न भूल जाएँ इसलिए मुझे कहना पड़ रहा है।
श्रम करना सबसे बड़ा मंत्र है। श्रम से ही आगे बढ़ा जा सकता है। इस हेतु हमें अपने विवेक एवं ज्ञान को जागृत करना होगा। विज्ञान की चिंता नहीं करना। भारत का इतिहास बहुत महत्वपूर्ण है। हथकरघा भारत का इतिहास है, जिसे युग के आदि में भगवान ऋषभदेव ने रचा है।
यन्त्र-मन्त्र के इस युग में हम स्वतन्त्र तो हो गए, किन्तु इस युग में हमारी धरती की उर्वरा शक्ति नष्ट हो गई है। चारों ओर से क्षति पहुँचाने वाले विचार आ गए हैं। भारत गरीब होता जा रहा है, क्योंकि श्रम और आचरण के बिना जो खा रहा है। उसे पचा नहीं पा रहा है और विदेशों द्वारा निर्मित विशेष दवाईयाँ खाना पड़ रही हैं। आज विद्यार्थी लोग विदेश जाएँगे तो यही होगा। सरकार को जागना होगा। चिकित्सा एवं शिक्षा दोनों विभागों के लिए सोचें। तभी भारत को आगे बढ़ा सकते हैं। लॉन लेकर अपना जीवन चलाना ठीक नहीं। इस संस्कृति को बदलना होगा। पहले ऐसा नहीं होता था। भारत को अपने स्वाभिमान को बनाए रखना होगा। भारत में जन्म लेकर विदेश में जा रहे हैं जो उन्हें भारत के इतिहास के बारे में मालूम नहीं है। सुख क्या है? पढ़ा था। स्वर्गीय सुख कहा जाता है, यह सुख विषयों में नहीं, इन्द्रियों में नहीं, पैसों में भी नहीं यह हमें बच्चों को शुरु से ही सिखाना है। तभी हम पुन: अपनी जड़ों में लौट पाएँगे और उस सुख को प्राप्त करने के लिए आगे बढ़ पाएँगे। मैं भारत के नेताओं से कहना चाहता हूँ कि वे यह सूक्ति याद रखें-‘‘या विद्या सा विमुक्तये।” अर्थात् विद्या ऐसी हो जो मुक्ति का कारण हो। भारत सदैव बागवान की तरह भीतर झाँकने वाला देश रहा है। लक्ष्मी की ओर मत देखो, लक्ष्मी तो चंचल होती है, उसे बाँधने का प्रयास मत करो। सरस्वती कभी चंचला नहीं होती। जहाँ सरस्वती स्थिर हो जाती है वहाँ लक्ष्मी का वास रहता है।
-१५ जुलाई २०१६, सती कॉलेज, विदिशा