भोपाल। आज हबीबगंज मंदिर परिसर में कुम्भ के मेले की तरह अपार भीड़ थी और ऐसी भीड़ में मूकमाटी के कुम्भ से अमृत की बूंदें विद्वानों के शब्दों की अभिव्यक्ति के रूप में छलक रहीं थीं।
आज मूकमाटी राष्ट्रीय अधिवेशन के चौथे सत्र में ज्ञान की ज्योत माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति वी.के. कुटियाला, संतोष सिंघई कुण्डलपुर, उपस्थित विद्वतजनों ने प्रज्ज्वलित कर सत्र का शुभारम्भ किया।
इस अवसर पर श्री कुटियाला ने कहा की मूकमाटी में पिरोया एक माला का रूप ले लेती है। आज के जो पत्रकारिता क्षेत्र के विद्याथीं हैं उन्हें इसके अध्ययन से बहुत ही सशक्त ज्ञान की उपलब्धि हो सकती है। महात्मा गांधी विश्वविद्यालय वर्धा के कुलपति गिरीश्वर मिश्र ने कहा कि प्रत्येक पंक्ति अपने आप में जीवन के यथार्थ को सहेजे हुए लगती हैं, ये एक महाकाव्य न होकर सम्पूर्ण जीवन दर्शन परिलक्षित होता है। प्रो. श्रीराम परिहार खंडवा ने कहा कि प्रत्येक पंक्ति से ऊर्जा का संचार करने वाली तरंगें प्रवाहित होती हैं। मूकमाटी काव्य न होकर एक धर्म ग्रन्थ जैसा है जो आत्मकल्याण का मार्ग प्रशस्त करता है। वरिष्ट साहित्यकार और कवि कैलाश मड़बैया ने अपनी कविता के माध्यम से अपनी भावांजलि प्रस्तुत की।
इस अवसर पर जैन विद्वान् डॉ. सुरेन्द्र भारती, बुरहानपुर ने मूकमाटी के धार्मिक पक्ष पर अपने मार्मिक विचार व्यक्त किए। डॉ. नीलम जैन पुणे, प्रो. सुकमाल जैन मुम्बई ने भी अपने विचार प्रस्तुत किए। कार्यक्रम का संचालन प्रो. चन्द्रकुमार जैन और डिप्टी कमिश्नर सुधीर जैन ने किया।
इस अवसर पर पूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने अपने आशीर्वचनों में कहा कि आजकल चित्र का जमाना चल रहा है, सभी लोग चित्र में अपना चित्त लगाकर बैठे हैं परन्तु ये चित्र आपके चरित्र को कमजोर कर रहा है। बाहर का चित्र हमेशा आकर्षित करता है जिसके मोह में आप सभी पराश्रित हो जाते हैं। जब हम अंतरंग के चित्र को निहारते हैं तो यथार्थ का बोध होता है और यहीं से चारित्र निर्माण की यात्रा प्रारम्भ होती है। उन्होंने कहा कि कोई भी काव्य शब्दों की अभिव्यक्ति को व्यक्त करने का सशक्त साधन होता है। आज विद्यार्थियों को यदि शिक्षा के साथ सार्थक ज्ञान का भी बोध कराया जाए तो शोध की दिशा उन्हें सही दशा तक ले जा सकती है।
-१६ अक्टूबर २०१६, भोपाल