मनुष्य जन्म सद्कर्मों से मिला है। इसे केवल खाने-पीने में दुरुपयोग मत करो। मानव जन्म को सार्थक करना है तो आत्मा की लब्धियों को पहचानो और पुरुषार्थ कर परमात्मा बनने का प्रयत्न करो।
योग्यता को प्राप्त करना गुणों पर आधारित है, लेकिन योग्यता का उपयोग करना पुरुषार्थ पर आधारित है। जैसे करंट होने के बाद भी यदि बल्व जलाने का पुरुषार्थ न किया जाए तो अँधेरा ही रहेगा। इसी प्रकार आपकी आत्मा में कई लब्धियाँ हैं, लेकिन उन्हें प्रकट करने का पुरुषार्थ तो आपको ही करना होगा।
मनुष्य जीवन आसान नहीं है। इसे खाने-पीने में गाँवाना अज्ञानता है। एक इन्द्रिय जीव भी अपनी क्षमता अनुसार पुरुषार्थ करता है और पंच इन्द्रिय मनुष्य सारी क्षमता होने के बाद भी आलस्य कर जाता है। यह जीवन के प्रति अपराध है।
अन्दर की आवाज को सुनना है और अनुभूति करना है तो बाहर की दुनिया से सम्पर्क विच्छेद करना होगा। हम अपनी ‘पॉजीटिव एनर्जी' का कितना उपयोग आत्म कल्याण में कर रहे हैं, यह शोध का विषय हो सकता है। आत्मा की कई लब्धियाँ उपयोग करने से उद्घाटित होती हैं। आज विज्ञान अपनी योग्यताओं का दुरुपयोग करने लगा है जिससे मानव जीवन के लिए ही नहीं वरन् सम्पूर्ण जीवन चक्र के लिए वह खतरनाक सिद्ध हो रहा है। महाप्रलय का महाप्रयोग बंद किया जाना चाहिए। महाप्रलय तो आना है-आयेगा जिसमें निमित्त मनुष्य के कर्म ही बनेंगे। अब तो आत्मशक्तियों को जागृत करने का महाप्रयोग प्रारम्भ किया जाना चाहिए।
-२२ अगस्त २०१६, भोपाल