जीवन में यदि आगे बढ़ना है तो व्यवस्थित क्रम से ही आगे बड़ा जा सकता है। पहले भोजन फिर स्नान ये क्रम नहीं चलता है बल्कि स्नान के उपरान्त ही भोजन ग्रहण करके हम स्वस्थ रह सकते हैं। एक दिन एक युवा को तेज भूख लग रही थी उसने स्नान के पूर्व ही एकदम गरम भोजन ग्रहण कर लिया फिर ठंडे जल से स्नान कर लिया तो उसी दिन से उसको सिरदर्द की समस्या शुरु हो गई। व्यवस्थित क्रम से जीवन का निर्धारण करेंगे तो सही प्रबंधन हो सकेगा, व्यवस्था का मतलब ही है अवस्था के अनुसार प्रबंधन।
जीवन के प्रबंधन की कला जानना भी बहुत जरूरी होता है क्योंकि प्रबंधन से ही बंधन से मुक्ति मिलती है, आज हरेक क्षेत्र में प्रबंधन का बहुत महत्व हो गया है क्योंकि अनेक संस्थाएँ उचित प्रबंधन के अभाव में समय से पूर्व ही अव्यवस्थित हो जाती हैं जिसके कारण वो स्वतः ही समाप्ति की कगार पर पहुँच जाती हैं।
खानपान में सबसे अधिक प्रबंधन की आवश्यकता है क्योंकि आज दूषित वस्तुओं के चलन से युवा पीढ़ी समय से पहले प्रौढ़ हो रही है, रोगों के कालचक्र ने आपको घेर लिया है, यदि निरोगी रहना चाहते हो तो खानपान के क्रम को व्यवस्थित करो। अच्छे पेय पदार्थों को छोड़कर डिब्बा बंद पेय को प्राथमिकता देने के कारण ही युवा मानसिक और शारीरिक रूप से अस्वस्थ हो रहे हैं। स्वच्छ और शुद्ध जल की जगह बोतल के जल का चलन भी हानिकारक सिद्ध हो रहा है क्योंकि उसमें जलीय तत्वों का अभाव रहता है।
आपके बच्चों का पुण्य है जो उन्हें आप जैसे माता-पिता मिले हैं, परन्तु आपका पुण्य प्रबल तब कहलाएगा जब आप बच्चों को भारतीय संस्कारों से संस्कारित कर उन्हें जीवन प्रबंधन के गुण सिखाओगे।
- २४ नवम्बर २०१६, गुरुवार, भोपाल