सत्य कटु है, सुनने में अच्छा नहीं लगता। आँखें सत्य को देखना नहीं चाहती परन्तु उसे सुनना, देखना और सहन करना पढ़ता है, ये सत्य है। पाठ्यक्रम को सरसरी निगाह से नहीं देख पाते परन्तु उसका चिंतन करना पढ़ता है। पाठ्यक्रम में जो आया है उसे स्वीकार करना पड़ता है। आज के विद्यार्थी कमजोर इसलिए हो रहे हैं क्योंकि वो ऐसे पाठ्यक्रम से दूर हो रहे हैं। जब पुराण पुरुष हो या उसकी पत्नी हो वो पुरुषार्थ उससे भी जुड़ा होता है, वो भी इतिहास की महानायिका होती है। जब भाषा समझ में नहीं आती तो चित्रों से भाव को पकड़ लिया जाता है। ये ही भारतीय संस्कृति है। जब गलतियों पर गलतियाँ होती जाएँगी। तब ही स्वीकारने की क्रिया होती है और जो स्वीकारता है वही जीवन को सुधारता है। इस भारत भूमि पर मुस्लिम शासिका ने अपने सर पर पुराण ग्रन्थ को उठाया है क्योंकि यही संस्कृति की ताकत है। इस भारत में राजा की आज्ञा का प्रतिकार नहीं किया जाता; भले ही उसकी रानी हो उसे भी स्वीकार करना पड़ता है। भारत की प्राचीन विधियों का नया रूप देकर विदेशों में नए-नए प्रयोग किये जा रहे हैं जिसे दुनिया स्वीकार कर रही है।
क्षत्रिय राजा क्षत्राणी को आज्ञा देता है, किसी नौकरानी को नहीं देता। हम पुराण को पढ़कर और समझकर ही भारतीय संस्कृति को जान सकते हैं, बड़े-बड़े लेखकों ने इन इतिहास की सत्य घटनाओं को बड़े ही तरीके से संजोया है, संवारा है, जिसमें भावों की अभिव्यक्ति परिलक्षित होती है। जब देवताओं की आँखों में भी इतिहास की उस घटना को देखकर आँसू की धारा बह निकली हो; वह दृश्य कैसा होगा? सहज रूप से कुंड के सामने स्थान बनाया गया था उस सती को ये अग्नि परीक्षा देनी थी, कूदना था उस अग्निकुंड में, जिसमें भीषण लपटें उठ रही थीं और वो सती भी परीक्षा देने को तत्पर थी। मर्यादा पुरुषोत्तम भी परीक्षा लेने अडिग थे क्योंकि वो राजधर्म की मर्यादा से बँधे थे।
जब किसी बात पर प्रश्न चिह्न लगाया जाता है तो उसका उत्तर सही तभी दे सकते हो जब प्रश्न के भाव को समझ जाओ। जब सीता तत्पर हो गई अग्नि में कूदने को तो लोग जल देवता की तरफ टकटकी लगाकर देखने लगे।
जिसके भीतर आत्मविश्वास होता है वो परीक्षा से भयभीत नहीं होता है। इसलिए सीता कूद पड़ी और चमत्कार हो गया। अग्नि लुप्त हो गई, कमलासन प्रकट हुआ, सीता उस पर विराजमान थीं। जल और अग्नि का चोली दामन का साथ होता है। जब बिजली अग्नि के रूप में कड़कती है तब ही बारिश होती है। इस दृश्य को देखकर सभी उपस्थित लोग जय-जयकार करने लगे।
इसी प्रकार आज के विद्यार्थी आत्मविश्वास के साथ परीक्षा दें, श्रम और पुरुषार्थ को प्राथमिकता दें। खोदने का पुरुषार्थ करें तो सूखी धरती में से भी जल की धारा बह सकती है। सीता की इस परीक्षा को देखकर सबकी आँखों में पानी आ गया। सीता की परीक्षा तो हो गई,अब राम की परीक्षा का समय आ गया था।
-९ अक्टूबर २०१६, रविवार, भोपाल