शिक्षा हमेशा कर्म की होती है जबकि आज शिक्षाकर्मी की शिक्षा चल रही है। भारत की मर्यादा खेती बाडी, साड़ी है। शिक्षा ऐसी हो जो भारतीय संस्कृति के आधार पर होना चाहिए परन्तु बिना सींग और पूँछ की शिक्षा चल रही है। बड़े-बड़े स्नातक आज बेरोजगार घूम रहे हैं, अनेक इंजीनियर कर्जे से दबे हुए हैं, उन्हें ऋणी बना दिया है। विश्व बैंक के कर्जे से भारत की बैंक भी दब रही है। आर्थिक गुलामी के दौर से भारत गुजर रहा है। शिक्षा लेकर-आप अपना अच्छा कर्म करें/ पुरुषार्थ करें। सुभाष चन्द्र बोस ने अपनी माँ को पत्र लिखा था कि माँ मुझे बाबू नहीं बनना बल्कि अपने पैरों पर स्वाभिमान से खड़े होना है।
भारत के बिना विश्व भी खड़ा नहीं रह सकता है। इस पर जरा विचार करो और भारत की नब्ज पहचानो।
बाबू बनने के चक्कर में कर्म से दूर हो रहे हैं देश के युवा। श्रम रहित समाज गुलामी की मानसिकता का प्रतीक बन जाता है।
-२ अक्टूबर २०१६, भोपाल