पहले की शिक्षा में तीन चरणों में परीक्षा के माध्यम से विद्यार्थी की योग्यता का मापन किया जाता था; फिर अगली कक्षा में जाने के लिए भी एक परीक्षा होती थी ताकि सरलता से उसे प्रवेश की पात्रता मिल जाए। आज सेमेस्टर सिस्टम के माध्यम से हर ६ माह में पाठ्यक्रम की परीक्षा होती है। ये अव्यावहारिक तरीका है क्योंकि वह ६ माह में पुनरावलोकन उस पाठ्यक्रम का नहीं कर पाता है और उसकी पढ़ाई की धारा भी टूट जाती है। जिससे उसका मनोबल टूटता है। इस शिक्षा नीति का कुछ लोग विरोध भी करते हैं क्योंकि ये प्रणाली प्रासंगिक नहीं है। इसमें अभिभावक और विद्यार्थी भी संतुष्ट नहीं है, परन्तु उनकी आवाज सुनने वाला कोई नहीं है क्योंकि शिक्षा का व्यवसायीकरण होता जा रहा है।
आज शिक्षा के नाम पर जो छल किये जा रहे हैं वो हमारी संस्कृति पर कुठाराघात है और ये सब सुनियोजित तरीके से किया जा रहा है। गोधूलि बेला में गाय-भैंस लौटकर आ जाते हैं फिर वो जुगाली करते हैं जिससे अंदर सार-तत्व बनते हैं जिससे दूध बनता है। आपके लिए भी कुछ सिद्धान्त बनाए गए हैं जो आपके ज्ञान को विकसित करने में सहायक सिद्ध होते हैं, आप जिनवाणी बगल में नहीं सामने रखोगे तभी ज्ञान की प्राप्ति हो सकेगी। आप बच्चों को भी यदि संस्कारित करना चाहते हो तो उन्हें ज्ञान का सही मार्ग दिखाने का उपक्रम करें।
-४ अक्टूबर २०१६, भोपाल