गुरुवर आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज कहा करते थे कि "यह मेरा तन भी वतन की सम्पदा है, यह शरीर भी राष्ट्रीय संपत्ति है इसका दुरुपयोग मत करो”, इससे बड़ा राष्ट्र प्रेम, राष्ट्र भक्ति और राष्ट्रीयता की मिसाल और क्या हो सकती है। यह राष्ट्रीयता का जीवन आदर्श है। आज हम अपने राष्ट्र को भी अपना राष्ट्र नहीं समझ रहे हैं तो फिर इस शरीर की तो बहुत दूर की बात है। वस्तुत: हमारा यह तन राष्ट्रीय संपत्ति ही है और समझना चाहिए। प्रत्येक प्राणी का तन राष्ट्रीय संपत्ति है इतना ही नहीं चाहे वह मनुष्य हो या जानवर। वे सब राष्ट्रीय धरोहर हैं, राष्ट्र के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य होता है कि वह अपने देश की रक्षा में अपना सहयोग दे। दूसरे के तन को खाकर, वतन की रक्षा नहीं हो सकती। जब जानवर भी राष्ट्रीय संपदा हैं फिर उनका कत्ल क्यों किया जाये? राष्ट्र की उन्नति का यह अर्थ कतई नहीं हो सकता कि हम अपने अर्थ के लिए उनको समाप्त करें और विदेश से मुद्रा कमायें। मनुष्य को चाहिए कि वह जानवरों के लिए आदर्श बने।
-१९९७, नेमावर