अपने दु:खों में रोने वाले, आँसू बहाने वाले इस दुनियाँ में बहुत हैं लेकिन जो दूसरों के दुखों में रोते हैं आँसू बहाते हैं, दूसरों के आँसू पोंछते हैं, ऐसे लोगों की संख्या इस दुनिया में बहुत कम है। अब आप दूसरों के आँसू पोंछना सीखिए, अपने आँसू तो सभी पोंछ लेते हैं, अपने आंसू पोंछना धर्म नहीं, दूसरों के आँसू पोंछना धर्म है। आज दुनियाँ में बहुत आँसू हैं फिर भी हमारी आँख में आँसू नहीं आ रहे हैं, नहीं। अहिंसा की पहिचान आँखों से नहीं, आँसू से होती है लेकिन आँसू उसी आँख में आ सकते हैं जिस के दिल में करुणा होगी, दया होगी। करुणा से खाली दिल वाले की आँख में आँसू नहीं आ सकते। आज जो मूक हैं, निर्दोष हैं, अनाथ हैं, ऐसे निरीह जानवरों की आँखों में आँसू हैं, वो पशु अपनी करुण पुकार किससे कहें क्योंकि उनके पास वचन नहीं, वे बोल नहीं सकते। यदि वे मूक प्राणी बोलना जानते होते तो अवश्य किसी कोर्ट में अपनी याचिका दायर कर देते, अपने अत्याचारों की कहानी सुना देते लेकिन हम इन्सान हैं, जो बोलने-सुनने वाले होकर भी कुछ न समझ रहे हैं और न सुन रहे हैं। यही सबसे बड़ी विडम्बना है।
-१९९७, नेमावर