यदि हम अपने देश की समृद्धि चाहते हैं तो वह समृद्धि उद्यम से ही हो सकती है, ऊधम से नहीं लेकिन आज हम उद्यम कम ऊधम ज्यादा कर रहे हैं। ऊधम से दम घुटता है, हम उद्यम करें, ऊधम नहीं। यदि हम उद्यम करेंगे तो हम एक सही आदमी बन सकते हैं और सही आदमी बनने के बाद ही हमारा कदम एक आचरण की कोटि में आ सकता है अत: हम उद्यम करें, ऊधम नहीं। मांस का निर्यात करना देश में ऊधम करना है क्योंकि यह उद्यम नहीं कहलाता। आज हमारे सामने हमारा कोई उद्देश्य नहीं है, विश्व का कल्याण तभी हो सकता है जबकि उसके सामने अपना एक उद्देश्य हो, यदि उद्देश्य दृष्टि में नहीं रहता तो देश क्या, प्रदेश में भी शान्ति नहीं हो सकती। पचास वर्ष के बाद भी हमने अपना कोई उद्देश्य नहीं बनाया। आज हम आजादी की स्वर्ण जयन्ती मना रहे हैं लेकिन स्वर्ण अवसर को खोकर ! आजादी प्राप्त की हमने अपने देश की उन्नति करने के लिए, देश का विकास करने के लिए। देश में सत्य, अहिंसा, संस्कृति, संस्कार को पुन: प्रतिष्ठित करने का कितना अच्छा स्वर्ण अवसर पाया था लेकिन गुणवत्ता को समझा ही नहीं।
-१९९७, नेमावर