जिसको आप माँ कहते हैं और उसी गौ माँ का मांस बेचकर राष्ट्र का उत्थान चाहना यह कितनी लज्जा, शर्म की बात है। भले ट्रेक्टर से कृषि हो जाये, लेकिन ट्रेक्टर से दूध नहीं मिल सकता, घी नहीं मिल सकता, खोवा (मावा), गोबर नहीं मिलेगा।
चेतन धन को नाश करके धन की वृद्धि करना बिल्कुल बेकार है यह तो अभिशाप है, इससे देश का कुछ भी उत्थान नहीं होगा। भारत को किस बात की कमी है। भारत के पास कृषि के लिए बहुत जमीन है फिर आज मछली की खेती, अण्डों की खेती, मांस की खेती क्यों की जा रही है?
गाँधी जी के शब्दों में (cow is the Poem ofpity) अर्थात गाय करुणा की कविता है। उन्होने गौ रक्षा का अर्थ भी बहुत अच्छा किया (Protection of the cow means protection of the whole voiceless creation of God) अर्थात गौरक्षा का अर्थ क्या है? ईश्वर के समग्र मूक सृष्टि की रक्षा करना ही गौरक्षा है। मूक सृष्टि का अर्थ पशु जगत के समग्र प्राणी जैसे-गाय, बैल, भैंस, घोड़ा, बकरी, बकरा, मुर्गा, मेंढक, मछली, पक्षी इत्यादि सब ।
गाय का दूध पीने वालो! गाय का खून मत होने दो, राष्ट्र की रक्षा और प्रजा का पालन हमारा धर्म होना चाहिए। यदि हम राष्ट्र की रक्षा और प्रजा का पालन नहीं कर सके तो हमारा अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा। हमारे पास आज राष्ट्रीय गीत, राष्ट्रीय ध्वज, राष्ट्रीय चिह्न है लेकिन ‘राष्ट्रीय चरित्र' नहीं हैं। यदि हम अपना राष्ट्रीय चरित्र बना लें तो हमारे राष्ट्र का भला है। वह राष्ट्रीय चरित्र क्या है? सत्य और अहिंसा ही हमारा राष्ट्रीय चरित्र हो, सत्य और अहिंसा ही हमारा राष्ट्रीय धर्म हो और यदि हमारे नस-नस में इस राष्ट्रीयता का संचार हो जाए तो फिर हमको किसी दूसरी चीज का सहारा लेने की कोई आवश्यकता नहीं।
-१९९७, नेमावर