पत्रकार वार्ता का एक अंश,९ सितम्बर २०१४
विदिशा चातुर्मास, दयोदय महासंघ का अधिवेशन
पत्रकार - आचार्य श्री! यह बात सामने आ रही है कि आज मीट एक्सपोर्ट बहुत हो रहा है, उसके बारे में आप क्या कहना चाहेंगे?
आचार्य श्री - देखिए, आज जो इस प्रकार का हिंसक व्यवसाय हो रहा है अंग्रेजों ने ही चालू कराया था। जब वे लोग भारत में आए तब भारत में कितने कत्लखाने थे? नहीं थे। उन्होंने चालू कराया था और आज कितने कत्लखाने हैं, आप सभी को इसका अध्ययन करना चाहिए। बिना सोचेविचारे आज्ञा लेकर या बिना आज्ञा के अंधा-धुंध खुल रहे हैं, खुलते जा रहे हैं। इसके पीछे किसका हाथ है? यह चिंतनीय विषय है। विदेशनीति में बहुत शक्ति है। कहीं आपकी विदेशनीति के माध्यम से भारत की नीति को समाप्त करने का यह षड़यंत्र तो नहीं है? बताते हैं कि पेट्रोल के बदले मांस निर्यात किया जाता है; तो ये आपका अनुबंध ठीक नहीं है, क्योंकि ऐसे अनुबंध से कुछ व्यापारी लोग इसमें सम्मिलित होकर अर्थ के लालच में अनर्थ कर रहे हैं। संस्कृति विरुद्ध इस कार्य से अहिंसा, पर्यावरण, प्रकृति, मानव सभ्यता का भारी नुकसान हो रहा है। यह कभी-भी व्यापार नहीं था और न ही कभी व्यापार की कोटि में आ सकता है। मांस के व्यापार के माध्यम से कोई भी देश उन्नति नहीं कर पाया। आप इतिहास उठाकर देखें। इससे प्राकृतिक विपदाएँ-आपदाएँ आतीं हैं, आ रहीं हैं वह भी देखें। मांस निर्यात शीघ्र बंद होना चाहिए।