जिस दिन मांस निर्यात रुकेगा उसी दिन सही ‘स्वतंत्रता दिवस' होगा। यह स्वतंत्रता नहीं है। स्वतंत्रता का अर्थ तो सभी जीवों को जीने का समान अधिकार दिलाना होता है। यह कौन-सी स्वतंत्रता है कि हम अपने लिए तो मानवाधिकार की बात करें और पशुओं को अनुपयोगी कहकर कत्ल कर दें। यह मानवाधिकार भी नहीं है, मानव को यह अधिकार नहीं है कि वह किसी की जान पर हमला करे, किसी का जीवन छीने। जीने का अधिकार सबको है। मृत्युदण्ड भी उसी को मिलता है जिसने कोई क्रूर अपराध किया हो लेकिन ये बेकसूर पशु निरपराधी हैं, इन्होंने कोई अपराध नहीं किया है, फिर इनको बेमौत क्यों मारा जा रहा है? इस अपराध की भी सजा होना चाहिए।
भारत वह राष्ट्र है जिसने हमेशा सारे विश्व को दिशा बोध दिया है और अहिंसा का सन्देश दिया है लेकिन वही भारत आज अपनी दिशा से भटक गया है। अहिंसक देश को आज अहिंसा का उपदेश देना पड़ रहा है क्योंकि उसने हिंसा को विकास का साधन समझ लिया है। जो गलत कदम है। मात्र अर्थनीति ही सब कुछ नहीं है, परमार्थनीति भी होना चाहिए। अर्थनीति देश को समृद्ध नहीं कर सकती, भौतिक सुख सुविधाएं आदमी को सुखी नहीं बना सकतीं। सुखी बनने के लिए परमार्थ नीति की आवश्यकता है। केवल अर्थनीति व्यक्ति को सन्तुष्ट नहीं कर सकती उसके साथ परमार्थ भी होना चाहिए। परमार्थ का अर्थ न्याय नीति का सहारा लेकर जीवन विकास है।
हम न्याय की बात करते हैं लेकिन न्याय का काम करना नहीं चाहते, हमारे न्यायालय किसलिए हैं? न्याय और कानून की व्यवस्था हिंसा और अपराध को रोकने के लिए ही तो हैं, न कि 'शो' के लिए। फिर हमारे न्याय का क्या अर्थ है, जो हिंसा पर प्रतिबंध न लगा सके। क्या न्यायालय कत्लखाने नहीं रुकवा सकता? हिंसा को रोकने में न्यायालय की क्या भूमिका है? ये कत्लखाने हिंसा और कत्ल के ठिकाने हैं, ये कत्लखाने पर्यावरण के लिए घातक हैं और प्रदूषण, गन्दगी, फैलाने वाले हैं, इन पर प्रतिबन्ध लगाना चाहिए। कत्लखाने मुक्त भारत का निर्माण करो, यही भारत की सही स्वर्ण जयन्ती है।
-१९९७, नेमावर