ये पशु-पक्षी देश की अमूल्य सम्पद हैं। इनसे ही धरती की हरियाली सुरक्षित रहेगी, ये पशु जीवित रहेंगे तो यह धरती प्रसन्न रहेगी, पशुओं को मारकर धरती को सुरक्षित नहीं रखा जा सकता। हमारा कर्तव्य है कि हम इन तमाम पशु-पक्षियों की रक्षा करें, इनको मारें नहीं, इनको सतावें नहीं, इनको अपनी शरण दें, सेवा करें, इनकी रक्षा करें, वस्तुतः यही सच्ची धार्मिकता है।
जीवों पर दया करना हमारा राष्ट्रीय कर्तव्य है, राष्ट्रीय कर्तव्य को भूलकर हम अपने राष्ट्र को उन्नत नहीं कर सकते। जिस राष्ट्र में दया नहीं है, मैं समझता हूँ उस राष्ट्र में कोई शास्त्र नहीं है क्योंकि दया से बड़ा और कौन-सा शास्त्र हो सकता है। आखिर हमारे शास्त्र-पुराण हमको दया करना ही तो सिखलाते हैं। फिर भी हमने यदि दया का पालन नहीं किया तो शास्त्रों को पढ़कर या अपने पास रखकर उनकी पूजा-आरती मात्र करने से कुछ नहीं होगा।
दया से बढ़कर और कौन-सी पूजा है। जिसके दिल में दया नहीं वह आरती करके भी क्या करेगा? आरती तो दिल को साफ-कोमल करने के लिए की जाती है लेकिन कठोर दिल वाला आरती करके भी क्या प्राप्त करेगा? दया करना परमार्थ है, आज हम धर्म को बेचकर धन कमा रहे हैं, उसी का यह परिणाम है कि हमारा देश ५० वर्ष पार करके भी गरीबी को नहीं भगा सका है।
-१९९७, नेमावर