यह कौन-सी अर्थनीति है? दुधारू जानवरों को कत्ल करके उनका खून मांस निर्यात किया जा रहा है और गोबर विदेशों से बुलवाया जा रहा हैं। हमको विदेश से गुोबर बुलवाने की आवश्यकता ही क्या है? हम इन दुधारू जानवरों का पालन करें, उनसे दूध भी मिलेगा और गोबर भी। गायों, भैसों का पालन करें, उनसे लाभ ही लाभ है, उनसे हमको शुद्ध दूध-दही-घी की प्राप्ति होगी, जिससे हमारा स्वास्थ्य ठीक रहेगा। अत: आदमी का स्वास्थ्य और धरती का स्वास्थ्य दोनों को ठीक रखने के लिए पर्यावरण की रक्षा अनिवार्य है, गाय की रक्षा ही पर्यावरण की सुरक्षा है।
अर्थ पुरुषार्थ करो लेकिन अनर्थ पुरुषार्थ मत करो। मांस निर्यात अर्थ नहीं, अनर्थ पुरुषार्थ है। उद्योग करने में हिंसा होती है लेकिन हिंसा का उद्योग नहीं होता। उद्योगी हिंसा अलग है और हिंसा का उद्योग अलग है। इसलिए तो उद्योग करो लेकिन हिंसा का उद्योग मत करो, मांस का उद्योग मत करो। मांस का उद्योग का अर्थ है निरपराधी जीवों की हत्या। यह कौन-सा न्याय है कि जो निरपराध है और उसको दण्ड दिया जाए? निरपराध को दण्ड देना यह कौन-सा लोकतन्त्र है। दण्ड संहिता होना चाहिए लेकिन अपराधी के लिए, निरपराधी के लिए नहीं। देश की पशु सम्पदा का नाश देश की कगाली का कारण है। भारत में गाय, बैल, भैंस, घोड़ा इत्यादि को धन माना जाता था और उनकी सुरक्षा की जाती थी। अनुपयोगी कहकर पशुओं को काटना छल है, कोई भी जीव, किसी का जीवन कभी अनुपयोगी नहीं होता। यदि मनुष्य पशुओं को अनुपयोगी कहता है तो क्या आदमी पशुओं के लिए अनुपयोगी नहीं है?
-१९९७, नेमावर