ऐसी सरकार को लेकर क्या करना जो बूचडखाने खोले, पशुओं का वध करे, मांस का निर्यात करे, हमको वह सरकार चाहिए जो हिंसा, कत्लखाने, पशुवध और मांस निर्यात पर प्रतिबंध लगाये, इनको रोके। इन कत्लखानों में मात्र पशुओं का ही वध नहीं हो रहा है अपितु जनता की धार्मिक एवं मानवीय भावनाओं का भी हनन हो रहा है, ऐसा करके क्या हम अपने देश में सुख, शान्ति, अहिंसा, मैत्री का वातावरण तैयार कर सकते हैं? क्या इन कत्लखानों से सत्य, अहिंसा जीवित रहेगी? क्या इन कत्लखानों से मानवता जिन्दा रहेगी? हिंसा का उद्योग देश में हिंसा ही फैलाएगा, अहिंसा नहीं। सरकार अहिंसा की बात करती है लेकिन हिंसा के कार्य छोड़ती नहीं। अहिंसा की स्थापना हिंसा से नहीं हो सकती। आज हमको हिंसा नहीं, अहिंसा चाहिए। अहिंसा को समाप्त करके क्या हिंसा से देश बचा पायेंगे?
परिश्रम का अभाव देश में गरीबी पैदा कर रहा है, हर व्यक्ति परिश्रम करने लगे तो देश का आर्थिक विकास बहुत जल्दी हो सकता है लेकिन देश की मौलिक चेतन सम्पदा को चौपट करके उसके बदले में कुछ विदेशी मुद्रा का लालच हमारे देश को चौपट कर रहा है।
-१९९७, नेमावर