यह कौन-सी सरकार है जो अण्डों को शाकाहारी कह रही है और झूठा प्रचार कर रही है। अण्डे कभी शाकाहारी नहीं हो सकते, अण्डे तो मांसाहारी ही हैं, अण्डों में जीव है, वह भ्रूण है, उसमें जीवन है। अण्डे किसी वृक्ष पर नहीं लगते। अण्डों का उत्पादन किसी वृक्ष पर नहीं होता, अण्डे कोई फल नहीं हैं, वह तो मुर्गी का बच्चा है। ऐसे जीवित अण्डों को शाकाहारी कहना सरासर अन्याय है। दुनिया का कोई भी अण्डा शाकाहारी नहीं हो सकता। आज वैज्ञानिकों ने भी इसी बात को सिद्ध कर दिया कि अण्डा मांसाहारी ही है और वह अण्डा मानव स्वास्थ्य के लिए घातक है, उसका सेवन कैंसर जैसे प्राणघातक रोगों को जन्म देता है अत: सरकार को जनता के साथ अन्याय नहीं करना चाहिए और टी.वी. में अण्डों का विज्ञापन बंद होना चाहिए। यह देश के साथ खिलवाड़ है।
क्या यही स्वतंत्र भारत का विकास है कि हम अण्डों को शाकाहारी कहने लगें? मांस को बेचने लगें, मांस, खून को सुखाकर पैकेट में बंद कर बेचने लगें? विकास के नाम पर देश में हिंसा का विकास हुआ है, अन्याय का विकास हुआ है, अत्याचार का विकास हुआ है, मानवीय सभ्यता, संस्कारों और चरित्रों का ह्रास हुआ है यही है हमारी पचास वर्षों की उपलब्धि। परतंत्र भारत में मांस का निर्यात नहीं हुआ, लेकिन आज स्वतंत्र भारत में मांस का निर्यात हो रहा है। हम स्वर्ण जयन्ती का जश्न मनाने की तैयारियाँ कर रहे हैं मात्र सभा, संगोष्ठी, सम्मेलनों के रूप में, इससे भारत का कुछ विकास नहीं हो सकता, भारत के विकास के लिए अहिंसा चाहिए, सत्य चाहिए।
-१९९७, नेमावर