अहिंसा की उपासना कोई तिलक लगाने वाला कर रहा है, यह कोई नियम नहीं है क्योंकि अहिंसा का कोई तिलक नहीं होता। अहिंसा आत्मा की वृत्ति है और वह आत्मा पशुओं के पास भी होती है। संसार में ऐसा कोई जीव नहीं जिसके पास आत्मा न हो आत्मा के बिना जीव ही नहीं हो सकता। यह आत्मा सबके पास है, आपके पास भी है लेकिन आपके पास अहिंसा नहीं, अहिंसा के अभाव में आपकी आत्मा हिंसक हो गई है, क्रूर हो गई है, आप अपनी आत्मा में अहिंसा की प्रतिष्ठा करें। जीवन को अहिंसक बनाएँ इसी में जीवन की सार्थकता है। अहिंसा को न भूलें, धर्म को न भूलें लेकिन यह भी याद रखें कि मन्दिर जाकर घंटी बजाना ही धर्म नहीं है। धर्म तो करुणा, दया का नाम है। जो ट्रकों में भरकर जानवर कत्लखाने जा रहे हैं, इन जानवरों की रक्षा करो,इनकी जान बचाओ यही सही धर्म है।
-१९९७, नेमावर