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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • अहिंसा का नाम है आदमी

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    यह मनुष्य मनु की सन्तान है, मनन करता है, चिन्तन करता है, विचार करता है, विचारशील है लेकिन आचारशील नहीं है। अब मनुष्य को आचारशील बनना है। आचार का अर्थ नैतिक आचरण होता है। हमको आज आचरण की आवश्यकता है मनुष्य के जीवन में आचरण की बड़ी कीमत होती है। आचरण के बिना मनुष्य, मनुष्य नहीं कहला सकता। कीमत मनुष्य की नहीं होती, कीमत आचरण की होती है, सदाचार की होती है, शाकाहार की होती है। यदि मनुष्य में सदाचार, सेवा, शाकाहार, सरलता नहीं तो वह मनुष्य नहीं कहला सकता। सदाचार का नाम है आदमी, सरलता का नाम है आदमी, अहिंसा का नाम है आदमी। ईमान का नाम है इंसान। मानवता का नाम है धर्म, इंसान को ईमान की पूजा करना चाहिए।

     

    भारत की प्राचीन कानून प्रणाली एवं दण्ड संहिता में दण्ड के नाम पर तीन धाराएँ थीं पहला 'हा' दूसरा 'मा' और तीसरा ‘धिक्र' इनका अर्थ यह है कि यदि किसी ने कोई अपराध कर लिया तो राजा उसको दण्ड के नाम पर मात्र ‘हा’ कहता था यानि हाय! हाय! तूने यह क्या कर लिया। बस इतने मात्र में वह अपराधी सुधर जाता था। किसी को 'मा' यानि अब ऐसा कभी मत करो और किसी को ‘धिक्र' यानि धिक्कार धिक्कार छी-छी। बस ये तीन ही दण्ड थे, न सजा थी, न जुर्माना और न फाँसी। मात्र शाब्दिक उच्चारण रूप दण्ड में ही उस समय का आदमी सुधर जाता था लेकिन जैसे-जैसे समय गुजरता गया उद्धृण्डता बढ़ती गई और दण्ड संहिताओं का भी विस्तार होता गया और आज तो दण्ड के नाम पर सजा है, जुर्माना है, फाँसी है, सब कुछ है लेकिन किसी भी प्रकार से अपराधों में कमी नहीं आ रही है, दिनों दिन अपराध बढ़ते ही जा रहे हैं।

     

    अपराधों को जन्म देने में हिंसक वातावरण का पहला हाथ है, सरकार अपराधों को रोकने के लिए कानून बनाती है लेकिन हिंसक वातावरण का स्वयं निर्माण भी करती है। यह तो सत्य है कि कत्लखानों से कभी अहिंसक वातावरण का निर्माण नहीं हो सकता। जहाँ कत्ल होता है, खून होता है, जिन्दा जीवों को मशीनों से काटा जाता है, ऐसे वध स्थानों में अहिंसक वातावरण की क्या कल्पना की जा सकती है? इन्हीं कत्लखानों की वजह से ही आदमी के अन्दर भी अनेक प्रकार के अपराध जाग रहे हैं। इन कत्लखानों ने पशुओं की चोरी करना सिखला दिया, हजारों को कसाई बना दिया, अत्याचार करना सिखला दिया। यूजलैस जानवर के नाम पर दुधारु जानवरों का भी वध होने लगा है, जवान गाय-बैल का भी कत्ल होने लगा है।

     

    एक तरफ तो सरकार गौवंश के गीत गाती है और दूसरी और कत्लखाने खोलकर गाय-बैलों का कत्ल करके उनके मांस को डिब्बों में बन्द कर विदेश निर्यात करती है और वहाँ से गोबर मंगाती है, दूध पाउडर मंगाती है यह कौन-सी नीति है? मांस निर्यात मनुष्यता के लिए अभिशाप है इसको रोकना चाहिए, कत्लखाने मानव जाति पर कलंक हैं, कत्लखाने भारतीय अहिंसक संस्कृति पर कुठाराघात है। मांस निर्यात को रोकना चाहिए, पशु बचाओ और उसके लिए हम सबको एक जुट हो जाना चाहिए।

    -१९९७, नेमावर


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    मांस निर्यात मनुष्यता के लिए अभिशाप है इसको रोकना चाहिए, कत्लखाने मानव जाति पर कलंक हैं, कत्लखाने भारतीय अहिंसक संस्कृति पर कुठाराघात है। मांस निर्यात को रोकना चाहिए, पशु बचाओ और उसके लिए हम सबको एक जुट हो जाना चाहिए।

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