स्वतंत्रता का क्या अर्थ है? आज हम स्वतंत्र होकर भी समझ नहीं पाए हैं और न जाने कब समझेंगे? आज हमको पचास वर्ष हो रहे हैं स्वतंत्रता प्राप्त किए लेकिन हम कहाँ देख रहे हैं और क्या समझ रहे हैं? पचास वर्ष के उपरान्त भी हम यह समझ नहीं पाए कि अहिंसा क्या है? यदि अहिंसा को समझ लेते तो मांस का निर्यात क्यों करते, कत्लखाने क्यों खोलते? यदि आपको अपने देश की रक्षा करना है, देश को बचाना है तो अपने अन्दर स्वाभिमान जागृत करो, अपने कर्तव्यों को समझो, अपने दायित्वों का पालन करो, अपने आपका बोध प्राप्त करो। निश्चित ही हमारे देश में एक ऐसा वातावरण तैयार होगा जो हिंसा के तूफान को रोक देगा। हिंसा को रोकने के लिए हमें किसी धन की आवश्यकता नहीं, हिंसा धन से रुकने वाली भी नहीं है क्योंकि हिंसा का स्रोत तो हमारा स्वार्थी मन ही है, झूठी प्रतिष्ठा है, सत्ता की लोलुपता है। हम अपने मन से स्वार्थ को निकाल दें, सत्ता की लम्पटता को छोड़ दें, अपने विचारों को पवित्र बना लें तो हिंसा रुक जाएगी। विचारों में पवित्रता अहिंसा से ही आ सकती है, हिंसा से नहीं क्योंकि अहिंसा पवित्र है और हिंसा अपवित्र है।
यदि भारत की पवित्र संस्कृति और सभ्यता को पवित्र रखना चाहते हो तो भारत से मांस का निर्यात बंद कर दी। मांस बेचना भारतीय संस्कृति नहीं, बस! यही स्वर्ण जयन्ती की सार्थकता है।
-१९९७, नेमावर