स्टेन्डर्ड से पहले अन्डर स्टेन्डिंग (समझदारी) होना चाहिए। आज स्टेन्डर्ड के नाम पर मनुष्य बहुत कुछ करता जा रहा है, लेकिन उसके पास जो स्टेन्डर्ड है उसकी अपनी कोई अंडर स्टेन्डिंग नहीं है। स्टेन्डर्ड का अर्थ तो आदर्श होता है। हमारे जीवन में आस्था, विवेक और कर्तव्य का स्टेन्डर्ड होना चाहिए और वह आस्था! अन्धी न हो अपितु विवेक के साथ हो और वह विवेक! कर्तव्य के साथ हो। यदि हमारे जीवन में आस्था, विवेक और कर्तव्य तीनों का एक साथ गठबन्धन हो जाए तो हमारा जीवन महक उठे, सुगन्धित हो जाए। जीवन महान बन सकता है, हम दूसरों के लिए आदर्श बन सकते हैं, उदाहरण बन सकते हैं, शर्त है कि हम अपनी आत्म प्रशंसा न करें। आत्म प्रशंसा हमको अपने कर्तव्यों से चलित करती है, विमुख करती है। आत्म प्रशंसा हमको कमजोर करती है और अहंकार को पुष्ट करती है। अतः हम अपनी आत्म प्रशंसा कभी न करें क्योंकि जो प्रशंसनीय होता है उसकी प्रशंसा स्वयं होती है करने की आवश्यकता नहीं।
-१९९७, नेमावर