हमेशा अग्रिम पंक्ति में रहने वाले लोग अपने पीछे वाली पंक्ति के लोगों को विस्मृत कर देते हैं जबकि जो अधिकार आगे वालों को होते हैं वही अधिकार अंतिम पंक्ति के व्यक्ति को भी होते हैं, परन्तु आगे वाला हमेशा अपने को श्रेष्ठ साबित करने में लगा रहता है, जरूरी नहीं कि जो ज्येष्ठ हो वही श्रेष्ठ हो। श्रेष्ठता का मापदंड बड़ेपन से नहीं बल्कि बड़प्पन से माना जाता है। जो बड़े होते हुए भी कभी अपने को बड़ा सिद्ध करने की होड़ में नहीं लगते उन्हीं के भीतर से बड़प्पन झलकता है।
धर्म कभी भी ये नहीं सिखाता कि अपने अधिकारों का दुरुपयोग करो बल्कि वो तो हमेशा कर्तव्यों के पालन की सीख देता है। आप सभी अपने कर्तव्यों का निर्वहन करना प्रारम्भ करें तो कभी अधिकारों की प्राप्ति के लिए संघर्ष नहीं करना पड़ेगा। समाज की अंतिम पंक्ति के योग्य व्यक्तियो को भी उतना ही सम्मान मिलना चाहिए जितना अग्रिम पंक्ति के व्यक्ति को दिया जाता है तभी समान नागरिक संहिता का
सिद्धान्त लागू हो सकेगा।
-३१ अक्टूबर २०१६, सोमवार, भोपाल