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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • प्रजासत्ता

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    'शिक्षा और भारत'राष्ट्रीय परिचर्चा से पूर्व

    पत्रकार वार्ता ३ नबम्बर २o१६, भोपाल

    आयोजक-शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास, नईदिल्ली

    एवं श्री दिगम्बर जैन पंचायत कमेटी ट्रस्ट, भोपाल

     

    पत्रकार - आज लोग भौतिक आवश्यकताओं के पराधीन हो गए हैं और सरकारों ने भी अपने मापदंड बना लिये हैं कि ऐसा विकास होगा तो ऐसा रहना चाहिए, तब ऐसी में पुरानी व्यवस्थाओं में कैसे आ पाएँगे, कैसे विकास होगा?

     

    आचार्य श्री - हम उन्हें यह कहना चाहते हैं कि विकास किसका नाम है? कौन विकसित हैं? और कौन विकासशील हैं? इन तीनों शब्दों पर एक साथ विचार करेंगे। हमारे सामने यदि कोई विकासशील है तो फिर विकसित कौन है? यदि विकसित के विना आप विकासशील के अन्तर्गत आ गए हैं या किसी के द्वारा लाया गया है, किन्तु आप विकासशील हैं नहीं। केवल अर्थव्यवस्था के कारण ऐसा अनर्थ हो रहा है। यह सब कुछ समझ में आ गया है इसलिए भारत को अपने आपको अपूर्णताशील में न गिन कर, विकसित हो करके और विकसित हो रहा है; ऐसा मानकर के चलिए और अपनी नीति को बदल दीजिए, अपनी वीथी को नहीं। वीथी का अर्थ होता है रास्ता। रास्ता हमें बदलना नहीं है क्योंकि हमें पश्चिम से पूर्व की ओर आना है। थोड़ा घूम जाओ बस। हम पश्चिम की ओर से पूरब की ओर आ जाएँगे एक सेकड में। थोड़ा घूम जाने मात्र से हम अपने भारत की ओर आ जाएँगे। हमें कहीं जाना-आना नहीं है हम तो वहीं पर ही हैं भारत में, किन्तु आज हम भारत में नहीं हैं, क्योंकि हम पश्चिम के समर्थन में उसकी नकल कर रहे हैं। हर वे अच्छे काम होने चाहिए, जिसके द्वारा सबका भला हो। लोकतंत्र अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण तंत्र है लेकिन यह ध्यान रखो कि स्वतंत्र होने के उपरांत भी स्वछंदता की ओर जा रहा है, यह देश का दुर्भाग्य है। हम यह कहना चाहते हैं कि सरकार कौन हैं? हम नहीं जान पाए। सरकार कौन है यदि जान गए होते तो यह नौबत नहीं आती। हम प्रजासता का उद्देश्य भूल रहे हैं। हम सरकार के ऊपर हैं। आज राजा है ही नहीं, फिर भी राजनीति चल रही है, यह सब गलत है। इसको मैं प्रकाशन करने योग्य नहीं समझता। जब राजा नहीं तो राजनीति क्या वस्तु है? जब प्रजातंत्र है तो स्वयं उसके हाथ में सत्ता है। आपके साथ सत्ता कहा गया और आपने मान लिया किन्तु सत्ता यदि आपके साथ होती तो जहाँ चाहे उपयोग करने के लिए स्वतंत्र हैं। हर कदम आपकी पसंद का होता, किन्तु ऐसा नहीं है। इसलिए विकासशील व्यक्ति नहीं, उत्कृष्ट कोई नहीं। भारत विकसित था अभी भी है, उधर देखने की आवश्यकता है।

     

    पत्रकार - महाराज जी देश में बहुत सारी समस्याएँ दिख रही हैं पर जाए?

     

    आचार्य श्री - इसकी उत्पत्ति की ओर भी अपने को देखना चाहिए। आपत्ति का कारण हम स्वयं भी हो सकते हैं। हमारी नीतियाँ भी हो सकतीं है। लगभग ३३ वर्ष पूर्व'मूकमाटी' महाकाव्य में थोड़ा-सा लिखा और उसकी भाषा हिंदी में ही है। उसमें आप देख सकते हैं। इसका जवाब अवश्य मिलेगा आपको कि आतंकवाद का मूल स्रोत क्या है?

     

    पत्रकार - महाराज जी! आतंकवाद का अंत हिंसा से ही होना चाहिए या अहिंसा से होना चाहिए?

     

    आचार्य श्री - हमेशा हिंसा से लड़ने के लिए हिंसा की आवश्यकता नहीं होती, किन्तु अहिंसा किसी की हत्या नहीं करती, ऐसा भी नहीं है। हिंसा की हत्या करना ही तो अहिंसा है। रोग की हिंसा जब तक डॉक्टर नहीं करेगा तो रोगी-रोगी ही बना रहेगा। संक्षेप में मैं यह कहना चाहूँगा कि अहिंसा कायरता का काम है ही नहीं। कायरता के कार्य में रत होना ही शरीर का दास होना है; वही कायरता है। इसलिए अहिंसा की उपासना करने वाले कभी भी कायर नहीं होते किन्तु जो कायर-हिंसा है उसमें भी रत नहीं होते बल्कि पृथ्वीतल से उखाड़ देते हैं। भारत भूल गया; यह उसकी हिंसा का मूल कारण रहा। उसमें भी आज वह नंबर वन में आ गया है; इसको छोड़ देना चाहिए।

     

    पत्रकार - आचार्य श्री राजसत्ता और धर्मसत्ता यह हमेशा से चलते आ रहे हैं और जब राजसत्ता अपने पद से दाएँ-बाएँ हुई तो धर्मसत्ता ने उसका मार्गदर्शन किया है लेकिन उस राजसत्ता की ये इच्छा होती है कि धर्मसत्ता भी उसके अनुरूप चले; इस पर प्रकाश करें?

     

    आचार्य श्री - इसका अर्थ राजसता है, राजसत्ता नहीं। राजसता का अर्थ है तामसिक गुणों से युक्त। तीन गुण होते हैंसतोगुण रजोगुण और तमोगुण। राजसत्ता का अर्थ 'मूकमाटी' में यही लिखा है कि राजसता भी आ सकती है और राजसत्ता भी आ सकती है। राजा है ही नहीं तो आप राजसत्ता की बात क्यों कर रहे हैं? आज राजसता रौद्र ध्यान से ओतप्रोत होने के कारण सत्ता के रूप में उसका दुरुपयोग कर रहे हैं। लोकतंत्र में राजा कैसे विलुप्त हो गया? आपने लोकतंत्र को स्वीकारा और राजतंत्र को दूर कर दिया। स्वतंत्र होने के लिए क्या आवश्यकता थी? ७० साल से आप लोकतंत्र के पुजारी हैं, उसको सुरक्षित रखिए। लोकतंत्र की परिभाषा उसका स्वरूप, उसका गुणधर्म। आज तो उसके कर्तव्य किसी एक व्यक्ति के पास देखने को नहीं मिल रहे हैं फिर भी यह तंत्र चल रहा है-चलाते रहिए।

     

    पत्रकार - यह तो शिक्षा से ही संभव होगा?

     

    आचार्य श्री - बिल्कुल-बिल्कुल! शिक्षा से ही संभव है, इसीलिए तो मैंने कहा ना; आपको पूरब की ओर चलना है।

     

    पत्रकार - जिस तरीके से आप कह रहे हैं कि आज राजसत्ता में राजा नहीं है हम लोग तो देख रहे हैं जैसे आज राजशाही चल रही हो?

     

    आचार्य श्री - जैसे आप कह रहे हैं वैसे आप बदल दीजिए। जैसे को तो में मानता ही नहीं। हम तो जानते नहीं सबको, किसी को नाम से नहीं जानते। किसी व्यक्तित्व को भी नहीं, कुछ भी नहीं, हम तो इतना ही जानते हैं-यह राजसत्ता क्या है? पहले एक राजा होता था उसके हाथ में सत्ता रहती थी लेकिन वह प्रजा के बिना नहीं चलता था। यथा राजा तथा प्रजा। आज तो प्रत्येक व्यक्ति राजा है, राजा बन गए हैं आप और आपके हाथ में सत्ता है तो दूसरे को सरकार क्यों कह रहे हैं, आप थोड़ी-सी परिभाषा की ओर देखें।

     

    पत्रकार - अभी-अभी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आपके दर्शन करने आए थे तो आपने उनको क्या मार्गदर्शन दिया और उनका रिस्पांस क्या रहा?

     

    आचार्य श्री - यह सब बातें आपको बता दीं पूर्व पीठिका के रूप में,इसके कई तत्व उनके पास आ गए होंगे, वो समझते हैं कि नहीं समझते मैं नहीं कह सकता। किस ढंग से उन्होंने सुना यह मैं नहीं कह सकता किन्तु यह बातें उनके पास आ गई होंगी।

     

    पत्रकार - आचार्य श्री चर्चा के दौरान आपको कुछ संकेत मिले काय?

     

    आचार्य श्री - हम इसको पहले से इसलिए नहीं खोलना चाहते हैं क्योंकि दो दिन की गोष्ठी में हम सारे के सारे राज खोलने वाले हैं।

     

    पत्रकार - आचार्य श्री आपने मतदान को लेकर कई बार मुद्वा उठाया है कि बहुत कम लोग वोट डालते हैं, सभी को वोट डालना चाहिए? क्या मतदान व्यावहारिक है? इस सम्बन्ध में आप प्रकाश डालें ।

     

    आचार्य श्री - हाँ व्यावहारिक है। हमने घोषित कर दिया है और व्यवहार क्या है? अव्यवहार क्या है? मताधिकार मिला है तो अवश्य करना चाहिए।

     

    पत्रकार - अच्छा महाराज! आप यह बताएँ सत्य-अहिंसा का प्रयोग करके आजादी इस देश में आई थी किन्तु आज पूरा देश उससे दूर होता जा रहा है; ऐसे में क्या किया जाए?

     

    आचार्य श्री - देखिए! अहिंसा का लक्षण अभी समझ में नहीं आया ना और जिन्होंने स्वतंत्रता दिलाई थी उन्हें तो समझ में था किन्तु आपने शब्दों को रट लिया तो बताओ अब क्या होगा? और आप कह रहे हैं कि भारत तो विपरीत दिशा में जा रहा, आज अहिंसा है कहाँ?

     

    पत्रकार - आचार्य श्री! जो शक्तियाँ पूरब की तरफ ना ले जाकर पश्चिम की तरफ ले जा रही हैं, उनसे कैसे लड़ें?

     

    आचार्य श्री - उनका साथ मत दो, बस यही लड़ना है। आपके हाथ में सत्ता है आप उनके लिए क्यों कह रहे हो? आप तो अपनी सत्ता का उपयोग करो। तभी बच सकेगी पूरब की संस्कृति।

     

    पत्रकार - आचार्य भगवन्! जो आदमी हमको पहले बोलता है कि हम यह करेंगे, वह करेंगे और वे आज सत्ता में पहुँचने के बाद बदल जाते हैं तब क्या करें?

     

    आचार्य श्री - देखो, जब आपके हाथ में सब कुछ है, आप ही सरकार को बनाने वाले हैं, तो फिर आप लोग कहाँ जा रहे हैं, आप अपने कर्तव्य से विमुख हो रहे हैं, उसी का परिणाम है। जिस प्रकार आप लड़के को भेज देते हो किसी नगर में अध्ययन करने के लिए और वह उतीर्ण नहीं होता। तो आप एक बार, दो बार, तीन बार देखते और फिर कहते हो-बेटा, अब वापस आ जाओ। अब लाइन बदल दो। सुन रहे हैं आप?. तो फिर आप लोग.।

     

    पत्रकार - हम लोगों ने वापस नहीं बुलाया उन्हें?

     

    आचार्य श्री - हाँ! यह गलती कर दी। अब इस गलती को सुधार लीजिए आप। बस, इतना ही करना और लड़के को आप बुला लीजिए, आधे में बुला लीजिए। यदि वह दो पहिए का स्कूटर या मोटरसाइकिल चाहता है तो; कह देना-बेटा! आ जा। हम तीन पहिया वाला दे देंगे तुमको। समझ गए ना। बच्चा तो समझ जाएगा, आप समझ जाओ पहले।


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    रतन लाल

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    राजसता का अर्थ है तामसिक गुणों से युक्त। तीन गुण होते हैंसतोगुण रजोगुण और तमोगुण। राजसत्ता का अर्थ 'मूकमाटी' में यही लिखा है कि राजसता भी आ सकती है और राजसत्ता भी आ सकती है।

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