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मूकमाटी प्रश्न प्रतियोगिता प्रारंभ ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • लोकनीति-लोकसंग्रह है, लोभसंग्रह नहीं

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    जैसे बड़ी-बड़ी वस्तुएँ क्रेनों के माध्यम से उठाई जाती हैं।उसी प्रकार हिम्मत, विश्वास और ताकत से ही अपनी भूमिका के दायित्व का भार उठाया जाता है। दायित्व भी उनको ही दिया जाता है जिसके सक्षम कंधे होते हैं। दायित्व का भार अनूठा होता है। यह भार उसे ही दिया जाता है जो इस भरोसे को पूरा करने की सामथ्र्य रखता हो क्योंकि जो जिसका रसिक होता है उसका पान वह आनंद के साथ करता है। दायित्व का निर्वहन करने वाला व्यक्ति जब उसमें रम जाता है तो जिस तरह संगीत की मधुर ध्वनि होती है उसी प्रकार कार्य में आनंद की ध्वनि उत्पन्न होती है। आप सब दायित्व से न घबराएँ। अपने आदर्श पुरुषों को समक्ष रखकर कार्य प्रारम्भ करें।

     

    लोकतंत्र में जो लोक का हो जाता है अर्थात् उसके प्रति समर्पित हो जाता है वही लोकतंत्र का पालन कर पाता है।

     

    बाँटो और राज्य करो, ये नीति इतिहास का एक हिस्सा रही है। प्रजा और राज ये दो पहलू हैं। प्रजा की रक्षा के लिए राजा को दायित्व दिया जाता है। 'यथा राजा तथा प्रजा' की कहावत को सार्थक तभी किया जा सकता है जब प्रजा को संतान के रूप में राजा देखता है क्योंकि संस्कृत में प्रजा को संतान कहा गया है। जीवन में जो क्षण मिले हैं उन्हें जी भर कर जियो और ये भूल जाओ कि कोई क्या कहेगा? कहना लोगों का काम है, करना आपका काम है। जो दायित्व मिला है, किसी भी स्थिति में पूर्ण करना आपका कर्तव्य है।

     

    राजा हमेशा प्रजा के लिए समर्पित भाव से कार्य करता है तो प्रजा भी अपना दायित्व निभाने के लिए तत्पर होती है। मत का मतलब मन का अभिप्राय होता है। लोकनीति लोक संग्रह है, लोभ संग्रह नहीं।

     

    आधी रात में मंत्रणा चल रही है, संघर्ष की घड़ी है, एक पल में इतिहास पलटने को है और इसी बीच एक पक्ष से एक संदेश मिलता है। राजा सोचता है कि क्या होने वाला है? फिर राजा उस संदेशवाहक को बुलवाता है तो वह आकर पत्र देता है, राजा उसे पढ़ता है। राजा राम के समक्ष विभीषण खड़ा होता है अपना प्रस्ताव लेकर। राजा के लिए मन पर भी विश्वास करना खतरनाक होता है क्योंकि मन दगाबाज होता है। लक्ष्मण सोचते हैं-राम जी को क्या हो गया, जो दुश्मन के भाई को आधी रात को बुलाया। विभीषण ने कहा कि मुझे धरती की रक्षा का सामथ्र्य राम के भीतर दिखाई देता है इसलिए मैं उनकी शरण में आया हूँ। ये सुनकर राम की सेना में सन्नाटा छा जाता है। सब अवाक् रह जाते हैं। विभीषण ने अपनी लंका की प्रजा की रक्षा के भाव से असत्याग्रह को छोड़कर सत्याग्रही बनने का भाव प्रकट किया।

    -४ सितम्बर २०१६, रविवार, भोपाल 


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    रतन लाल

      

    राजा हमेशा प्रजा के लिए समर्पित भाव से कार्य करता है तो प्रजा भी अपना दायित्व निभाने के लिए तत्पर होती है। मत का मतलब मन का अभिप्राय होता है। लोकनीति लोक संग्रह है, लोभ संग्रह नहीं

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