भारतीय किसान प्राचीन विज्ञान के हिसाब से खेती करता आया है। खेती का तरीका बदल गया, परन्तु किसान वही है। किसान कई तरह के बीजारोपण करता है। पाँच जगह एक बार में बीज जाता है यंत्र के माध्यम से। यंत्र में ऊपर ढक्कन लगा रहता है। किसान फिर भी चौकस निगाह रखता है। खेत में फसल के साथ खरपतवार भी पैदा हो जाती है जिसे किसान उखाड़कर फेंकता जाता है; साथ में कुछ अनुपयोगी और कमजोर पौधों को उखाड़कर फेंकता जाता है। खरपतवार और फसल एक जैसी दिखती है तो सावधानी से हटाना पड़ता है। इसी प्रकार आप कर्मों को करते हो तो अच्छे कर्म के साथ बुरे कर्म भी करते हो, आप भी किसान के इस विज्ञान को समझकर गुण, धर्म को सुरक्षित रखने का पराक्रम करो। पूर्व के जो भाव थे उनका आपने लोप कर दिया। संस्कार भी लुप्त हो रहे हैं, खरपतवार को भी गेहूं समझकर ले रहे हो। भारतीय संस्कृति के सभी मूलभूत मापदंडों को ध्वस्त कर दिया है आपने। पुराने पदचिहों को मिटाकर नए कदम रखना प्रारम्भ कर दिया है। आप भी गेहूं की फसल की तरह बनो, खरपतवार (बेकार की चीज) मत बनो। वरना आपको भी उखाड़कर फेंक दिया जाएगा। भारतीय संस्कृति के मूलभूत सिद्धान्तों को पकड़कर रखी उसके अनुसार जीवन बनाओ-जीयो तो गेहूँ की फसल के समान मूल्यवान बने रहोगे फिर कोई फेंकेगा नहीं उपयोग करेगा।
-२६ अक्टूबर २०१६, बुधवार, भोपाल