जीवन को उन्नत बनाने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि हम अपने द्वारा किये गये अतीत के अनर्थों की ओर देखें और उनका संशोधन करें, उनका परिमार्जन करें और आगामी काल में उन अनर्थों को नहीं करने का संकल्प करें। इस शरीर को अहिंसा के लिए काम में लायें और मन को भविष्य की उज्ज्वलता के लिए लगायें, दूसरों की अच्छाई करने में अपनी बुद्धि लगायें और कर्तव्य की ओर आगे बढ़ें, तभी हमारा जीवन सार्थक हो सकता है अन्यथा नहीं। अनर्थ वही करता है, जो परमार्थ को भूल जाता है जो परमार्थ को याद रखता है वह व्यक्ति अनर्थ नहीं कर सकता। अपने स्वभाव को याद रखना ही परमार्थ को नहीं भूलना है क्योंकि स्वभाव ही तो परमार्थ है, अपनी आत्मा का ख्याल ही तो सही परमार्थ है, अनर्थों से बचना ही तो परमार्थ है, पापों को छोड़ना ही तो परमार्थ है और अहिंसा ही सही परमार्थ है। हम अहिंसा को जीवन में उतारें तभी सही मायने में हमारा जीवन उन्नत हो सकता है अन्यथा अवनति ही होगी।
-१९९७, नेमावर