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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • राष्ट्रीय परिचर्चा से पूर्व पत्रकारों को सम्बोधन

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    शिक्षा और भारत राष्ट्रीय परिचर्चा से पूर्व पत्रकार वार्ता

    ३ नबम्बर २o१६, भोपाल

    आयोजक-शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास, नईदिल्ली एवं

    श्री दिगम्बर जैन पंचायत कमेटी ट्रस्ट, भोपाल

     

    पत्रकार - आचार्य श्री! आज देश एवं समाज को मोड़ देने की जरूरत है; इस पर आप के क्या विचार हैं?

     

    आचार्य श्री - आने वाले २ दिनों में जो संगोष्ठी होने जा रही है उसकी आज यहाँ पूर्व पीठिका के रूप में आप लोग आए हैं।

     

    आपने एक शब्द कहा-मोड़ देने की आवश्यकता है। मोड़ने का अर्थ है, किसी ऐंगल को लेकर मोड़ना। जहाँ पर विपरीत ही दिशा हो, वहाँ पर मोड़ की आवश्यकता नहीं। भारतीय संस्कृति पूरब की ओर मुख वाली है अब किस ओर मोड़ना है दक्षिण या उत्तर, क्योंकि पश्चिम की ओर तो मोड़ हुआ ही है, देख ही रहे हैं।

     

    अब हम पूछना चाहते हैं कि मोड़ क्या चीज है, कितना मोड़ होना चाहिए?

     

    जो परिवर्तन हुआ है उसको वापस स्थिति में लाना ही तो मोड़ है। इसके लिए ठीक विपरीत दिशा में जाना पड़ेगा। हमें सृष्टि का परिवर्तन नहीं करना है, हमें तो दृष्टि में परिवर्तन लाना है। हम समष्टि का कल्याण चाहते हैं किन्तु कल्याण चाहने मात्र से नहीं होगा क्योंकि हमारे युवाओं में मोड़ की बात नहीं है। हमें तो भविष्य की बहुत चिंता नहीं है, हमें तो इस भारत को अतीत की और ले जाना है। जो ७० साल में विपरीत दिशा में चला गया है। उसके लिए ७० साल की आवश्यकता नहीं और ना ही १७ पापों की आवश्यकता हैं। बस, सतक होने की आवश्यकता है। यदि हम एक ही बार में घूम जाएँ तो हमारे सामने पूरब रहेगा, प्रतिदिन हम उस सूर्यनारायण का आलोक पाएँगे और जब हम विश्राम करेंगे उस समय घूमकर के देखेंगे कि सूर्य पश्चिम की ओर ढल गया है, हमें ढलने की भी बात नहीं है-मुड़ने की बात नहीं है, हमें पूरे के पूरे संकल्प लेने हैं कि हमें अतीत के भारत के दर्शन करने हैं और उसे विश्वास में लेना है इसीलिए विश्वास है।

     

    हमें राष्ट्र को नहीं मोड़ना है क्योंकि सीधा ही रास्ता है भारत का, कभी भी मोड़दार रास्ता नहीं रहा, बिल्कुल सीधा रास्ता है, वह अहिंसा का उपासक रहा है। मैं चाहूँगा कि आप लोग एकदम 'इंडिया' को एक प्रकार से पूरब की ओर ले जाएँ जहाँ ‘भारत' का दर्शन होगा और जब ‘इंडिया' में ' भारत' का दर्शन होगा तो ‘इंडिया' को पूरे के पूरे लोग भूल जाएँगे क्योंकि भारत की महिमा ही ऐसी है।

     

    एक औसत के अनुसार इसका परिवर्तन हुआ है, उसमें कमी किसकी है; मैं कह नहीं सकता, क्योंकि वर्षों तक एक सत्ता चली। वह अर्थ-व्यापार के माध्यम से सत्ता पर आई और २00-२५0 वर्षों तक सत्ता पर काबिज रही। यह बहुत भयानक स्थिति रही, इसको हम २००-२५० वर्षों तक समझ नहीं पाए। अब हमें समझना होगा और यह तभी सम्भव है जब हम इतिहास को देखेंगे एवं उसके अनुसार कार्य करेंगे। अपने को राष्ट्र का निर्माण करना है तो पीछे जहाँ से हैं बिल्कुल रास्ता बना हुआ है, बहुत ही अच्छा रास्ता बना हुआ है। आज राजनीति के जितने नेता-कर्णधार हैं उनको कहना चाहता हूँकि आप रोड का चक्कर छोड़ दीजिए मोड़ का चक्कर भी छोड़ दीजिए। आप को कोई खतरा नहीं होगा। जहाँ मोड़ होगा वहाँ पर खतरे होते हैं और गांधीजी की आवश्यकता पड़ती है। आप ऑख मींच कर भी जा सकते हैं, पर ऑख मींच कर नहीं चलना, नीचे देखकर के चलो, यह हम लोगों को भारतीय संस्कृति की विनम्रता है।

     

    आप लोग एक दिन पूर्व में आए हैं, मैं समझता था कि कल ही प्रारंभ है लेकिन पत्रकारों ने कहा एक दिन पहले पत्रकार वार्ता चलती है, क्योंकि जो परोसने वाला होता है उसको पहले से ही तैयारी करनी होती है। हमने समझा सर्वप्रथम पत्रकारों को ही परोस दो ताकि यह लोग अच्छे ढंग से थाली दिखाएँ सब लोगों को और इसको मैं अच्छा, सभ्य मानता हूँ, क्योंकि जब तक भोजन को हर व्यक्ति के पास नहीं ले जाएँगे, तो उसका मूल्यांकन बहुत कठिन होगा। फिर भी भारत बहुत समझदार है, उसको इस हाल में लाया गया है। जैसे मंदी लाई जाती है ना। वस्तुत: मंदी लाई जाती है, मंदी आती नहीं। ऐसे घुमावदार कथानकों के माध्यम से, वस्तुओं के माध्यम से भारत को एक प्रकार से विपरीत दिशा में ले जाया गया और वे उसमें सफल हो गए। सफर ज्यादा दूर नहीं है, ७० वर्ष नहीं लगेंगे और मैं बार-बार कहना चाहता हूँ७० वर्ष नहीं लगेंगे, बल्कि बहुत कम समय में हमारी दृष्टि पूरब की ओर हो सकती है। पूर्व का अर्थ होता है-ठीक दिशा जहाँ से हम आए हैं-उस ओर जाएँ हम। इसके लिए अन्धा भी अपनी आँखों का प्रयोग करता है; समझे। अंधे को भी बता दो तुम्हारा मुख पश्चिम की ओर है, अब तुम्हें पूरब की ओर करना है। तो वह अपने अनुभव ज्ञान के अनुसार तत्काल घूमकर अपना मुख पूरब में कर लेता है। हमें पूरब की ओर जाने के लिए कोई दिशा पूछने की आवश्यकता नहीं। जिस रास्ते से हम आए हैं उस रास्ते को पूछने की आवश्यकता नहीं। जहाँ भटक जाते हैं, वहाँ हमें पूछने की आवश्यकता है। भारत को चाहिए कि किसी की पूछता के चक्कर में ना रहे। आप भी याद रखें, हमेशा-हमेशा इसको पूरब की ओर ही जाना है और फिर इसके उपरांत बहुत समय नहीं लगेगा। कुछ ही दिनों में हम उसका अनुभव कर सकते हैं। जो हमारे पास था-जो है, इस प्रकार अनुभव होगा जैसे सब कुछ बदल गया है। यद्यपि आप लोग कुण्डली को मानते हो या नहीं मानते हो, मैं नहीं समझता, लेकिन इंडिया के कारण भारत की कुण्डली बदल गई है। पुन: भारत को अपने रूप में लाने के लिए इंडिया को छोड़ना होगा, हमें किसी को हटाना नहीं है। हमें ईस्ट दिशा की ओर जाना है बस। किसी को हम उपेक्षा दृष्टि से नहीं देखेंगे, किन्तु हमारी अपेक्षा पूरब की है। हम किसी का विरोध नहीं कर रहे हैं, हम समर्थन नहीं करेंगे, क्योंकि हम पूर्व वाले पश्चिम का समर्थन कभी संस्कृति, आधार भिन्न-भिन्न हैं।

     

    एक प्रश्न यह उठता है कि विरोध क्यों न किया जाए? तो हम पश्चिम का विरोध करके हम अपनी शक्ति को क्यों खोएं? हम तो बोध रखने वाले हैं और होश-हवास के साथ चलने वाले हैं किन्तु प्रमाद के कारण पूरा-पूरा परिवर्तन हो गया, भारत के इतिहास का। इसीलिए 'इंडिया' आ गया। 'इंडिया' नाम ही अपने आप में गड़बड़ है। इतना ही पर्याप्त समझता हूँ कि हमें भारत की पहचान के लिए घूमकरके विपरीत दिशा में अपना मुख करना है, और तब हमारे सामने जो भारत दिखेगा, वह भारत देखने योग्य है, महसूस करने योग्य है और उसमें कोई चिंता का विषय नहीं है। अपने पास सब कुछ भंडार हैं। चेतन का भी भंडार है, अचेतन का भी भंडार है। इतिहास का भी भंडार है, गणित का भी भंडार है। कोई भी इतिहास खोल करके आप एक बार देख लीजिए। जो कुछ भी विज्ञान है और तंत्र-ज्ञान है या कृषि-विज्ञान वह सब भारत से निकले हैं, भारत में ही ऐसा होता था। भारत तो खान है, बस खान को खोदने वाले की आवश्यकता है। इनमें मूर्धन्य विद्वान्, चिंतक और भारत के हितैषी सब कह रहे हैं, उनको हमें सुनना है, लेकिन उनकी सुनते हुए कोई शब्द खटकेगा; तो हम उसका उत्तर अवश्य देने का प्रयास करूंगा और भारतीय इतिहास के आधार पर देने का साहस अवश्य करूंगा। आप पत्रकारों से मेरा कहना है कि आप भी वही साहस के साथ इसका प्रकाशन अवश्य करें। मेरा कहना है आप डरिए नहीं, भारत कभी भी डरता नहीं है। जो वस्तु-स्थिति है उसको सबके सामने रखना चाहिए। आप दबकरके मत चलिए, दबंगता के साथ चलिए। जनता आपके साथ अवश्य रहेगी, लेकिन अखबार के साथ खबर अच्छी रखना चाहिए। खबर अच्छी का अर्थ स्वादिष्ट नहीं, सही रखना चाहिए। सही का समर्थन यदि आप लोग नहीं करेंगे तो कभी भी इस देश का उद्धार नहीं होने वाला है। आप एक मजबूत स्तंभ के रूप में हैं और इसकी बड़ी आवश्यकता है। आप लोग यहाँ आए हैं, आपके लिए जो कुछ बताना आवश्यक था वह बता दिया है।


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