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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • 65. वर्षा : पत्थरों की

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    और अब आतंकवाद को लगभग सफलता मिलती-सी लगी, भाग्य साथ देता-सा और नाव पर सवार हो वह परिवार के सम्मुख मार्ग रोककर खड़ा हुआ। और कहकहाहट के साथ कहता है- मेरा मान सम्मान हो, मन को लुभाने वाली भोग विलास की अच्छी-अच्छी वस्तुएँ मुझे मिलें, ऐसी अज्ञानता से भरी धारणा है तुम्हारी। फिर बताओ समाजवाद में कहाँ आस्था है तुम्हारी, सबसे आगे मैं रहूँ और समाज बाद में क्या यह ठीक है? अरे कम से कम शब्द के अर्थ की ओर भी तो देखो-समाज का अर्थ होता है समूह और समूह यानी सम-समीचीन, ऊह-विचार, सही तरीके से सोचना-विचारना है जो सदाचार की नींव है। कुल मिलाकर अर्थ यह हुआ कि-

     

    "प्रचार-प्रसार से दूर

    प्रशस्त आचार-विचार वालों का

    जीवन ही समाजवाद है।" (पृ. 461)

     

    समाजवाद - समाजवाद चिल्लाने से समाजवादी नहीं बनोगे तुम और अब उस पार पहुँचने का विकल्प त्याग दो। पाप-पाखण्ड का फल पाना है तुम्हें जीवन का मोह त्याग कर, नरक की ओर जाना है और परिवार के ऊपर अन्धाधुन्ध पत्थरों की वर्षा होने लगी।

     

    आतंकवाद द्वारा ऐसे असभ्य शब्दों का प्रयोग किया जा रहा है कि - जिसे सुनते ही क्रोधाग्नि भभक उठे और मान तिलमिलाने लगे। पत्थरों की मार से घनी चोट लगने से सबके सिर घूम से गये हैं, खून की धारा बहने लगी है, जिस धारा से जल की धारा भी लाल-सी हो गई है, मानो एक विचार की ही दो सखियाँ आतंकवाद पर रुष्ट हुई हो। सेठ जी के सिवा पूरा परिवार परवश हो पीड़ा का अनुभव कर रहा है-

     

    "आचरण के सामने आते ही

    प्रायः चरण थम जाते हैं

    और

    आवरण के सामने आते ही

    प्रायः नयन नम जाते हैं,|" (पृ. 462)

     

    चारित्र की बात आते ही प्रायः अच्छे-अच्छे लोग चुप हो जाते हैं। थोड़ा-सा भी नियम-संयम लेने की हिम्मत नहीं करते। जैसे आवरण के सामने आते ही आँखें झुक जाती/बंद हो जाती हैं। जब तक वस्तु स्वरूप का सही ज्ञान नहीं होता तब तक मोह के कारण संसारी प्राणी कभी रस्सी को सर्प मानकर विषय भोगों को छोड़ देता है तो कभी सर्प को रस्सी मान विषय-भोगों में लीन हो जाता है।

     

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    ऐसी स्थिति में भी धैर्य-साहस के साथ, आतंक से संघर्ष करता हुआ सेठ सबसे आगे हो, कुम्भ की सुरक्षा हेतु, उसे अपने पेट के नीचे ले नीचे मुख कर लेटा है और वन की घटना को याद रख, अपने ही दुष्कर्मों का फल मान समता से सहन कर रहा है। कुम्भ को फोड़ने का प्रयास विफल हुआ, कमर में बंधी रस्सी को काटने का प्रयास भी सफल नहीं हुआ। लगता है कुम्भ की कठिन तपस्या देख जलदेवता ने परिवार के चारों ओर रक्षामण्डल-भामण्डल की रचना की हो अथवा यह मत्स्यमुक्ता का चमत्कार भी हो सकता है। कुछ भी हो, अब आतंकवाद को अपनी हार निकट लगी साथ ही साथ उसके मन में कुम्भ का

    अच्छा उद्देश्य भी समझ आने लगा।

     

    1. आतंकवादी - राज्य या विरोध भाव को दबाने के लिए हिंसा या भयोत्पादक उपायों का सहारा लेना/ सहारा लेने वाला व्यक्ति।



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