आतंकवाद की पुनरावृत्ति, जलदेवता से परिवार को डुबाने की माँग, नदी का जवाब-समर्पण हो चुका है। पुनः सरोष सक्रिय आतंकवाद नाव पर सवार हो, परिवार के सम्मुख खड़ा होता है। समाजवाद की मीसांसा,पत्थरों की वर्षा, परवश हुआ सेठ परिवार, कुम्भ को फोड़ने का प्रयास किन्तु चारों ओर रक्षामण्डल की रचना। आतंकवाद को लगने लगी पराजय, फिर बड़ा-सा जाल परिवार पर फेंकना चाहता है, जिसे पवन दूर आकाश में उछाल देता है। आतंकवाद उल्टा नाव में गिर पड़ता है और डाँवाडोल होती नाव। कुम्भ के संकेत से संयत हुआ पवन, दुर्घटना टली, माहौल प्रसन्न।
पुनः उछलता आतंकवाद शुभाशुभ भावों की बात, परिवार को धमकी, सेठ को छोड़ समूचा परिवार आत्मसमर्पण के विषय में सोचने को बाध्य हुआ। तभी नदी ने कहा-उतावली मत करो और कोपवती हो नाव को नाच नचाती कि आतंकवाद ने मन्त्र का स्मरण कर देवता दल को आमंत्रित किया - देवों का आना, अपने बल की सीमा बताना और आतंकवाद को सलाह - परिवार की शरण में जाना ही पतवार को पाना है। इधर आतंकवाद की नाव का करधनी तक डूबना कि आतंकवाद क्षमायाचना कर, दीनहीन हो शरण की माँग करता है धरती से। सेठजी द्वारा माँ की उदारता शिशु के प्रति बताकर निशंक होने की बात। आतंकवाद दल नि:संकोच हो नाव छोड़ नदी में कूद पड़ता। परिवार के एक-एक सदस्य ने आतंकवाद के नौ सदस्यों को झेल लिया और आतंकवाद का अन्त हो अनन्तवाद का श्रीगणेश हुआ।