सेठ का परिवार अपार हर्ष में डूबा, सेठ को उदासीन देख कुम्भ सन्त समागम की सार्थकता, वैराग्य दशा की बात बताता है। लेखनी द्वारा सामायिक पंक्तियाँ दी गईं, जिसे सुन सेठ की आकुल-व्याकुलता मिटी और पाक्षिक संकल्प प्रभु पूजन को छोड़ माटी के बर्तनों का उपयोग परिवार का भी समर्थन ।
परिवार की परिणति देख बहुमूल्य बर्तन चमत्कृत हुए। तमतमाते स्वर्ण कलश के मुख से ज्वालामुखी सी वचनावली फूटती है-सेठ ने सब कुछ शान्ति के साथ सुना कलश की कुशलता की कामना शान्ति के लिए कुछ बिन्दु प्रस्तुत करता है, आँख और चरण की शरण में धूलकणों की बात। हम पर श्रमण का प्रभाव सुन स्वर्ण कलश द्वारा श्रमण पर भी आक्रोश । कुम्भ में भरे पायस ने स्वर्ण-कलश माटी का उगाल कह, माटी का स्वभाव धर्म समझाया, उसके प्रति कृतज्ञ बनने की अमाप मान देने की बात कही।
पायस के थकते साहस को देख लेखनी करने लगी, दीपक और मशाल का उदाहरण दे माटी और स्वर्ण कलश की तुलना। लेखनी द्वारा स्वर्ण कलश को मशाल की उपमा दिये जाने पर कुम्भ ने स्वयं को धिक्कारते हुए प्रभु से प्रार्थना की, सब में साम्य हो। कुम्भ की प्रार्थना से चिढ़ती झारी ने कुम्भ को पापी कहा, सो कुम्भ ने पर पदार्थ को ग्रहण करना ही पाप बताया। पारदर्शी झारी को वासना से भरी अप्सरा की संज्ञा प्रदान की, फिर अपना परिचय देते हुए सदा एक सी दशा वाली समता समान बताया। पाप की पुतली सम्बोधन सुन लाल हो उठा-अनार का रस, उसका समर्थन करता हुआ हलवा, केसर ने भी सर हिला श्रमण में श्रामण्य का अभाव बताया।