आहारदान चल रहा है, सेठजी के वस्त्राभूषणों द्वारा पात्र के अंगोंपांग से तुलना-अहंकार का पोषक। बच्चों द्वारा झांकने का प्रयास, असंयमी का काम, सर को कसकर बाँधा, पर बाहर निकली लट कहती है, पात्र से-मुझे क्यों बन्धन में डालते ? सानन्द सम्पन्न आहार दान पुनः परम तत्त्व में लीन साधक, संयमोपकरण कर कमलों में, कमण्डलु में प्रासुक जल अतिथि दर्शन हेतु आंगन में अड़ोस-पड़ोस की जनता का आना एवं सेठ द्वारा उपदेश देने की प्रार्थना अतिथि से, पात्र के मुख से निकले कुछ शब्द और उपवन की ओर विहार, पीठ दर्शकों की ओर।
सेठ कमण्डलु ले, श्रमण के पीछे-पीछे चलता हुआ नसियाँ जी में पहुँचता है। गुरु चरणों को छोड़ वापस घर लौटने का उपक्रम- सेठ की आँखों में आँसू भर आते हैं, मन की शंका-प्रश्नावली गुरु सम्मुख कहता है-गुरु की गम्भीरता रहस्योद्घाटन करती है। नियति और पुरुषार्थ का सही स्वरूप जानकर भी उदासीन भावों के साथ ढलान में लुढ़कते-ढुलकते पाषाण खण्ड की भाँति घर पहुँचता है सेठ।