नाग-नागिनों द्वारा पूजित परिवार, संरक्षण में लगे गजदल को झाड़ियों में छुपा आतंकवाद निन्दा की नजरों से बार-बार, झाँक-झाँक कर देख रहा है। कल्पना से बाहर घटित इस घटना को देख वह पुनः और अधिक भयभीत हुआ, व्याकुलता, उत्तेजना और मानहानि से उत्पन्न हुई स्वच्छन्दता के ताप से। और फिर बलशाली के समक्ष निर्बल इसके सिवा कर भी क्या सकता है? काले-काले सघन बादलों की इच्छा के साथ ही, साधित मन्त्रों से मन्त्रित सात नींबू, जो कि काली डोर से बंधे हैं, शून्य आकाश में उछाल देता है वह। फिर तुरन्त ही फल सामने आ गया यह सब एकाग्रता का परिणाम है क्योंकि -
"मन्त्र-प्रयोग करने वाला
सदाशयी हो या दुराशयी
इसमें कोई नियम नहीं है।
नियन्त्रित - मना हो बस!
यही नियम है, यही नियोग,
और यही हुआ।" (पृ. 437)
अच्छा-बुरा कैसा भी उद्देश्य हो यदि मन्त्र प्रयोगकर्ता स्थिरचित्त वाला हो तो मन्त्र नियम से कार्य करता है और यहाँ भी यही घटित हुआ। घने-घने बादलों की काली-काली घटाएँ आकाश में डोलने लगी, चारों ओर घना अंधकार छा गया, लगता है रव-रव नामक सप्तम नरक की रात्रि ही ऊपर आ गई है। प्रचण्ड पवन बहने लगा अर्थात् भयंकर तूफान प्रारम्भ हुआ जिससे पर्वत भी हिलने लगे, शिखर टूट कर गिरने लगे, वृक्षों में संघर्ष छिड़-गया, बड़े-बड़े वृक्ष जड़ सहित उखड़ गए और शीर्षासन करने लगे तथा बांस दण्डवत् हो धरती की छाती से चिपक गये। भयंकर मेघों की गर्जना सुन मयूर-समूह द्वारा नृत्य करना तो दूर उनके मुख से आवाज निकलना भी बंद हो गई और मान-मर्यादा से रहित स्त्री के समान, मेघों को क्रोधित करने वाली बिजली चमकने लगी।
और मूसलाधार वर्षा होने लगी, जिसे देख जलप्रपात-सा अनुभव हो रहा है सारी धरती जल में ही डूबी जा रही है। उमड़ते बादल, चमकती बिजली और रह- रहकर ओला वृष्टि भी होती रही, शीत लहर चलने लगी फिर भला ऐसी स्थिति में निद्रा किसे आ सकती है ? क्योंकि पाप और पुण्य फलों के अनुभव के लिए, भोग और उपभोग के लिए केवल भोग-सामग्री की ही नहीं किन्तु अनुकूल काल और क्षेत्र की भी अपेक्षा होती है।
ऐसी भीषण प्रलयकारी स्थिति में भी सद्गुणग्राही गजदल द्वारा परिवार का चारों ओर से रक्षण चलता रहा। परिवार के पुण्य योग से शीघ्र ही बादल छट गये, आकाश में पूर्व दिशा से लालिमा फूटने लगी हैं। बादलों का संकट दूर हुआ और परिवार जन नदी के किनारे जाकर खड़े हो गये किन्तु अब परिवार के सम्मुख एक और गम्भीर समस्या आ खड़ी हुई, वर्षा के कारण नदी में नया पानी आया है और नदी वह संवेग'-निर्वेग से दूर मदोन्मत्त प्रमदा-सी वेग-आवेग वाली बनी है। धीरे-धीरे परिवार की गहन गम्भीरता, भयता में ढलती जा रही है और परिवार का मन कह उठा चलो यहाँ से लौट चलें और लौटने का उद्यम हुआ कि कुम्भ कहने लगा।