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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • 68. नाच नाचती : नाव

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    आतंकवाद की अदमनीय धमकी सुन सेठ को छोड़ सारे परिवार का दिल हिल गया, भय से भरा दृढ़ संकल्प टूटने-सा लगा। अकाल में ही जीवन का अवसान होता-सा देख और आगे जीने की इच्छा रखता हुआ आत्म - समर्पण के लिए बाध्य हुआ परिवार, कि नदी ने कहा-उतावली मत करो! क्या असत्य के समक्ष सत्य का आत्मसमर्पण होगा? क्या असत्य शासक बनेगा और सत्य शासित होगा अब? हे भगवान् ! कैसा काल आ गया कि जौहरियों के बाजार में काँच की चकाचौंध के कारण हीरों के हार को नीचा देखना पड़ रहा है अब सती भी व्यभिचारिणी की अनुचरी बन पीछे-पीछे चलेगी क्या? सत्य का भी विवेक समाप्त हो गया उसे अपने ऊपर विश्वास नहीं रहा। भीड़ के अनुसार ही सत्यासत्य का निर्णय होगा। नहीं... नहीं.... कभी....नहीं।

     

    जल में, थल में और गगन में सब कुछ असहनीय हो गया है अब। जब तक घट में प्राण हैं, डटकर मुकाबला करना होगा, यह धारा अब अपने लक्ष्य से नहीं हटेगी, यूँ कहती-कहती कोपवती हो, बहती-बहती क्षोभवती हो नदी नाव को नाच नचाती है। पल में ही नाव पलटने वाली है, ऐसा देख आतंकवाद ने मन ही मन मन्त्र का स्मरण किया सो तुरन्त देवता दल का आना हुआ उन्होंने सविनय नमन कर, प्रार्थना की कि-किस कारण हमें याद किया गया स्वामिन् ! कारण ज्ञात हो।

     

    आदेश की प्रतीक्षा में कुछ पल व्यतीत हुए कि स्वयं देवों ने कहा नमन की मुद्रा में ही-विद्याबलों की अपनी सीमा होती है स्वामिन् ! उसी सीमा में हमें कार्य करना पड़ता है कहते हुए लज्जा का अनुभव हो रहा है कि प्रासंगिक कार्य करने में हम पूरी तरह असमर्थ हैं। अतः हम क्षमा चाहते हैं वैसे हे स्वामिन् ! यहाँ आते ही हमने अनुभव किया कि हम हिरण-शिशु के समान सिंह के सम्मुख खड़े हैं, फिर संघर्ष का प्रश्न ही नहीं उठता और तुमने भी अपने बल की उस बल के साथ तुलना तो की ही होगी, ऐसी दशा में परिवार की शरण में जाना ही पतवार को पाना है तथा अपार संसार का किनारा पाना है। अन्य सभी प्रकार के उपाय, अपने लिए ही घातक और हार के कारण सिद्ध होंगे, यह निश्चित है। उस पर भी यदि प्रतिकार करने का विचार हो तो सुनो-

     

    "सलिल की अपेक्षा

    अनल का बाँधना कठिन है

    और

    अनल की अपेक्षा

    अनिल को बाँधना और कठिन

    परन्तु,

    सनील को बाँधना तो ........

    सम्भव ही नहीं है।" (पृ. 472)

     

    पानी की अपेक्षा आग को बाँधना कठिन है और आग की अपेक्षा हवा को बाँधना तो और अधिक कठिन है, किन्तु आकाश को तो बाँधना ही सम्भव नहीं है। कभी भी घी पर जल का शासन नहीं चल सकता क्योंकि घी सदा जल के ऊपर रहना जानता है देवों पर कभी जहर का प्रभाव नहीं पड़ता और न ही भौरों पर लेखनी का इसी प्रकार कई सूक्तियाँ, प्रेरणा देती पंक्तियाँ, कई उदाहरण, नई- पुरानी दृष्टियाँ और दुर्लभतम अनुभूतियाँ देवता दल ने आतंकवाद को सुनाईं।



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