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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • 19. अतिथि की प्रतीक्षा में : सुसज्जित कलश

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    कुम्भ के कण्ठ में हल्दी की दो पतली रेखायें खींची गईं, जिनके बीच में कुमकुम लगाया गया। हल्दी, कुमकुम और केसर की महक से वातावरण भी आकर्षित और प्रसन्नता उत्पन्न करने वाला बना । सुन्दर मुलायम हरे-हरे भोजन पचाने में सहायक चार-पाँच पान कुम्भ के मुख पर रखे गये। बीचोबीच श्रीफल रखा गया, जिसमें हल्दी कुमकुम छिड़के गये। अब वे पान खुले कमल की पाँखुड़ियों के समान शोभित हो रहे हैं। 

     

    इस अवसर पर श्रीफल कहता है पानों से - हमारा शरीर कठोर है और तुम्हारा नरम-मुलायम, संभव है यह कठोरता तुम्हें अच्छी न लगे। लेकिन इतना विचार करना कि आज तक स्पर्शन इन्द्रिय मुलायम तन- वसन-शयन को ही चाहती रही, सो संसार का ही कारण बना, किन्तु यह पथ संसार से विपरीत मोक्ष का है यहाँ आत्मा की पराजय नहीं जीत है। इस मोक्षपथ' का सम्बन्ध तन से नहीं है, यहाँ तन गौण होता है चेतन-प्राप्ति की चाह ही मुख्य है। इसलिए मृदुता और काठिन्य में समानता पाई जाती है यहाँ। और फिर यह तो देखो हमारा भीतरी भाग जितना मुलायम है उतना मुलायम तुम्हारा उपरिल तन है क्या? बस बाहर ही बाहर नहीं हमारे भीतर भी झाँको क्योंकि

     

    "मृदुता और काठिन्य की सही पहचान

    तन को नहीं,

    हृदय को छूकर होती है।" (पृ. 311)

    कोमलता और कठोरता का वास्तविक परिचय शरीर को छूकर नहीं अपितु हृदय अंत:करण को स्पर्श कर ही किया जा सकता है। श्रीफल की सारी जटायें दूर कर दी गई है, सिर पर एक चोटी बस तनी/खड़ी है, जिस पर खिला-खुला एक गुलाब का महकता फूल सजाया गया है। प्रायः सबकी चोटी नीचे की ओर लटकती हुआ करती हैं, किन्तु श्रीफल की ऊपर उठी हुई होती है। लगता है इसीलिए श्रीफल के दान को मोक्ष देने वाला कहा गया है।

     

    कुम्भ के गले में स्फटिक की माला पहनाई गई जो कहती है कि - निर्विकार, स्फटिक के समान निर्मल, शुद्ध प्रभु का जाप करो। इस प्रकार से सजाए हुए माटी के मंगल कलश को अष्ट पहलुदार (अष्टकोणीय) चंदन की चौकी पर अतिथि के इंतजार में रख दिया गया।



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